Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

नई कविता : सागर-सा है पिता

हमें फॉलो करें नई कविता : सागर-सा है पिता
webdunia

देवेन्द्र सोनी

जितनी जरूरी है जीवन में हमारे
नदी की मिठास
उतना ही जरूरी है
समुद्र-सा खारापन भी।
 
आसान नहीं है
बनना सागर 
सागर बनने के लिए चाहिए
विशालता, गहराई और 
सबको आत्मसात करने का गुण।
 
माना कि मौन रहकर
सागर
समाहित कर लेता है स्वयं में
उसकी ओर आने वाली हर नदी को
पर नदियों ने समझा है कभी 
दर्द सागर का?
 
उफनता और सिमटता भी है
यदि वह तो केवल
प्रयोजन होता है उसका
स्वयं में औरों को मिलाने का।
 
सागर के ये सारे गुण
होते हैं एक पिता में
और मिलने वाली नदियां
होती हैं उसकी वे विभिन्न भावनाएं
जो देती हैं मिलकर विस्तार
अपने परिवार को
जहां से चलता है सृष्टि का विधान।
 
हां, यह अलग बात है
नहीं सुहाता है उसका खारापन
लगती हैं नदियां ही मीठी
पर सोचें जरा
सागर भी हो जाए यदि मीठा
तो क्या
उससे संरक्षित, उसका परिवार
रह पाएगा सकुशल?
 
इसीलिए कहता हूं
जितनी जरूरी है
जीवन में हमारे
नदी की मिठास
उतना ही जरूरी है
समुद्र-सा खारापन भी।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या होता है पिता इन 6 पंक्तियों से जानें...