साहित्य कविता : आदमियत

सुशील कुमार शर्मा
नारी पत्थर बनी,
हम सबने पूजा।
भगवान पत्थर बना,
हम सबने पूजा।
 
माता-पिता की तस्वीर,
हम सबने पूजी।
नारी जिंदा है,
हम सब उसे नोचते हैं।
 
भगवान जिंदा है इंसानियत में,
हम उन्हें छोड़ चुके हैं।
माता-पिता जिंदा हैं,
वृद्धाश्रम में।
 
मरे को पूजना,
और जिंदा को दुत्कारना।
यही हमारी नीयत है,
यही आदमियत है।
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