कविता : बेर का पेड़

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-डॉ. रूपेश जैन 'राहत'
 
आज जब मैंने
अपने कमरे की खिड़की खोली तो
दूर कोने पर
मुझे बेर का पेड़ दिखाई दिया।
 
कुछ वाकयात
फौरन ही जेहन में उतर आए
मेरा बेर तोड़ना
तोड़े हुए बेरों को
ललचाकर देखना
बेरों को मुंह से काटना कि
उनमें कीड़े-इल्लियां दिखाई देना।
 
कई बार ऐसा होने पर
मेरा झुंझला जाना
फिर मीठे-मीठे बेरों के बीच
मेरी झुंझलाहट खत्म हो जाना।
 
आज मुझे यकीं हो गया है कि
ये बेर का पेड़ 
मेरी यादों में 
एक यादगार हिस्सा बन गया है।

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