हिन्‍दी कविता : रावण दहन

राजीव आचार्य
फिर मारा गया रावण
हर वर्ष की तरह
हमनें दशानन को
अग्नि में दग्ध किया
उसके हर एक मुख को
बाणों से ध्वस्त किया।

आज फिर हम
आत्ममुग्ध हुए
धर्म की अधर्म पर
अच्छाई की बुराई पर
विजय से
आश्वस्त हुए।

फिर विस्मृत किया
भीतर बैठे रावण को
काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार
जो छिपकर बैठे है, चित्त में
अवसर की तलाश में
बद्ध करने को तैयार
अपनें पाश में।

बाहर के रावण को
संहार किया बाणों से
पर ये रावण न मरेगा
ऐसे किसी प्रहार से।

कोई विभीषण न आएगा
न मातालि राह दिखाएगा
दग्ध इसे करना होगा
भीतर के ही राम से।

जब मन भीतर राम होंगे
फिर रावण न आएगा
एक बार में ही दशानन
भस्मीभूत हो जाएगा।।

Edited: By Navin Rangiyal/ PR  

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

क्या आप भी शुभांशु शुक्ला की तरह एस्ट्रोनॉट बनना चाहते हैं, जानिए अंतरिक्ष में जाने के लिए किस डिग्री और योग्यता की है जरूरत

हार्ट अटैक से एक महीने पहले बॉडी देती है ये 7 सिग्नल, कहीं आप तो नहीं कर रहे अनदेखा?

बाजार में कितने रुपए का मिलता है ब्लैक वॉटर? क्या हर व्यक्ति पी सकता है ये पानी?

बालों और त्वचा के लिए अमृत है आंवला, जानिए सेवन का सही तरीका

सफेद चीनी छोड़ने के 6 जबरदस्त फायदे, सेहत से जुड़ी हर परेशानी हो सकती है दूर

सभी देखें

नवीनतम

सावन मास में शिवजी की पूजा से पहले सुधारें अपने घर का वास्तु, जानें 5 उपाय

क्या संविधान से हटाए जा सकते हैं ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ जैसे शब्द? क्या हैं संविधान संशोधन के नियम

सिरदर्द से तुरंत राहत पाने के लिए पीएं ये 10 नैचुरल और स्ट्रेस बस्टर ड्रिंक्स

'आ' से अपनी बेटी के लिए चुनिए सुन्दर नाम, अर्थ जानकर हर कोई करेगा तारीफ

आषाढ़ अष्टाह्निका विधान क्या है, क्यों मनाया जाता है जैन धर्म में यह पर्व

अगला लेख