हिन्दी कविता : तनख्वाह वाला काम

Webdunia
- राजेश मेहरा


 
 
जवानी तन-मन से लगाई अपने काम में,
सपने थे इसी काम से ऊंचाई को पाने के।
 
घर भूला, सारा समाज साथ परिवार का,
में करूंगा मेहनत तो बनेगा मेरा आका।
 
कहा एक दिन तुम नहीं हो किसी काम के,
आका चाहे नहीं आओ तुम कल से काम पे।
 
गिला नहीं आका से, वो तो ऊपर बैठा है,
बीच वालों ने नाम के, उसके सहारा लिया है।
 
जब परिवार को जरूरत है सहारे की मेरे,
आज मैं बैठा हूं अपनों से अपना ही मुंह फेरे।
 
तोड़ दिया है इस सोच ने मुझे कि होगा क्या,
बीमार हूं, थका हुआ पर बीच वालों को क्या?
 
गुबार से भरा दिल खून के पी रहा आंसू मैं,
में तो जी लूंगा साथ में अपनी किस्मत के।
 
जगा मालिक दिल में उनके इंसानियत भी, 
ना चूसे खून जवानी में मेरे जैसों का कभी।
 
ना दिखाओ सपने कि करे कोई काम मरने की हद,
मरने की हो जाए हालत जो कि नहीं थी उसकी जद।
 
 
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