हिन्दी कविता : कली

तुषार रस्तोगी
सूर्य की पहली रूपहली किरण
जब इस धरातल पर पड़ी


 
दमक उठा पर्वतों पर उसका सोना
झरनों नदियों में चमकी चांदी की लड़ी
 
उसके हंसते ही अंकुर भी लहलहा उठे
कलियों की आंखों में आया पानी
कहता है चमन 'निर्जन'
ऐ मुझे रोशन करने वाले खुदा
अब कोई माली ही मुझे मिटाएगा
हर फूल को चमन से जुदा कराएगा
 
यूं तो आसमां भी तेरी मुट्ठी में है
चांद-तारे भी तेरी जागीर हैं
ऐ मेरे! परवर-दिगार-ए-आलम
क्या?
 
एक फूल की इतनी ही उम्र लिखी है
खिलता है ज्यों ही घड़ी भर को वो
उजड़ने की उसकी वो आखिरी घड़ी है
कोई वहशी किस पल आएगा
ये सोच 
आज कली बेहोश पड़ी है। 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

विमान निर्माता बोइंग है ऊंची दुकान, फीके पकवान

बारिश के मौसम पर सबसे खूबसूरत 10 लाइन

क्या कोलेस्ट्रॉल में आलू खाना सही है? जानिए आलू खाना कब नुकसानदायक है?

इन 5 लोगों को नहीं खाना चाहिए चॉकलेट, सेहत पर पड़ सकता है बुरा असर

कैसे होती है विश्व युद्ध की शुरुआत, जानिए क्या हर देश का युद्ध में हिस्सा लेना है जरूरी

सभी देखें

नवीनतम

विश्व मधुमेह जागरूकता दिवस 2025: डायबिटीज से बचना चाहते हैं? इन 7 आदतों को आज ही अपनाएं

ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने में मददगार हैं आसानी से मिलने वाले ये 9 आयुर्वेदिक हर्ब्स

बाल कविता: मैं और मेरी दुनिया

ये है मोबाइल के युग में किताबों का गांव, पढ़िए महाराष्ट्र के भिलार गांव की अनोखी कहानी

रिश्तों की मशीनों में उलझी युवा पीढ़ी, युवाओं को रूकने की नहीं, रुक रुककर जीने की है जरूरत