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होली : फगुनिया गीत

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सुशील कुमार शर्मा

, गुरुवार, 13 मार्च 2025 (15:50 IST)
कुण्डलिया छंद
 
1.
फागुन लिखे कपोल पर, प्रेम फगुनिया गीत
दहके फूल पलाश के, कहां गए मन मीत।
कहां गए मन मीत, फगुनिया हवा सुरीली।
भौरों की गुंजार, हंसे मन सरसों पीली।
है सुशील मदमस्त, वसंती पायल रुनझुन।
लेकर अंक वसंत, झूमता आया फागुन।
 
2
झोली में होली लिए, हुई फगुनिया शाम।
सांस-सांस महके इतर, बौराया है आम।
बौराया है आम, चलो खेलें हम होली।
तज कर सारे द्वेष, मस्त हम करें ठिठोली।
हुई पलाशी शाम, उमंगों की अठखेली।
मल कर गाल गुलाल, नेह से भर लें झोली।
 
3
राधा के रंग में रंगे, नंदलाल गोपाल।
निरख निरख मन मोहना, राधा हुई निहाल।
राधा हुई निहाल, रंग भर कर पिचकारी
भागे नंदकिशोर, भागती राधा प्यारी।
हो गए लाल गुलाल, निशाना ऐसा साधा।
पकड़ कलाई जोर, खींचते मोहन राधा।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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