काव्य : बेटी के हाथ की मेंहदी...

संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'
संजय वर्मा "दृष्टि"
 
निखर जाती है
बेटी के हाथों की सुंदरता 
जब लगी हो हाथों में मेहंदी ।














मेहंदी, रोसा और बेटी 
लगती जैसे बहनें हो आपस में 
महकती, निखरती जाए 
जब लगी हो हाथों में मेहंदी ।
 
मेहंदी भी जाती है बेटी के 
संग ससुराल में 
बाबुल की यादों के 
बेटी आंसू कैसे पोंछे 
जब लगी हो हाथों में मेहंदी ।
 
जब न होगी बेटियां 
तो किसे लगाएंगे मेहंदी
होगी बेटियां तब ज्यादा ही रचेगी 
जब लगी हो हाथों में मेहंदी । 
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