हिन्दी कविता : मैं क्या लिखूं

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प्रहलाद सिंह कविया
मैं श्रृंगार लिखूं और प्यार लिखूं,
और कोई मान मनुहार लिखूं।
और बरखा भरे इक बादल का,
मैं वसुन्धरा से प्यार लिखूं॥
मैं बरखा को तरसते खेत लिखूं,
और कृषक की बढती आस लिखूं।
और खारे समद के दिल में बसी,
नदिया से मिलन की प्यास लिखूं॥
मैं कृष्ण-राधा का प्रेम लिखूं,
और मधुवन की रसीली रास लिखूं।
और पर्वत झरनों का साथ लिखूं,
मैं सबरी का विश्वास लिखूं॥
 
मैं सूरजमुखी का सूरज से,
वह नैन मिलन का सार लिखूं।
निज प्राण समर्पित करने वाले,
मैं पतंगे का लौ से प्यार लिखूं॥
 
मैं खिलती कली से चुरा-चुरा,
वह भ्रमर का रसपान लिखूं।
हरियाली से लहलहाते सारे,
मैं अपने खेत खलिहान लिखूं॥
 
मैं यौवन चढ़ी नवयुवती के,
तन मन पर छाई बहार लिखूं। 
और तपती गर्मी के बाद हूई,
मैं सावन की तेज फुहार लिखूं॥

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