कविता: उनकी तारीफ के कसीदे

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निशा माथुर
उनकी तारीफ के कसीदे.. 
कभी शबनमी-सी रात कभी, भीगी-भीगी, चांदनी से होते हैं
मुझपे गजल वो कहते हैं, तो कभी, मुझे गजल-सा कहते हैं।
 
उनकी तारीफ की अदा.. 
चांद की मदमाती चांदनी से, यूं मेरे अक्स को छू जाती है,
शरारात भरी नजरों से मेरे दिल को, तार- तार कर जाती है।
 
उनकी तारीफ के लफ्ज .. 
बिखरे हैं फकत आरजुओं से तो, कभी जुस्तजू से खिलते हैं,
दुआ में फरिश्तों को शामिल कर, उस दुआ से फलते हैं।
 
उनकी तारीफ का अंदाज..
फूलों सा हंसी, चांदनी का गुरूर, मुझे चांद-सा महजबी,कहता है,
कहते हैं कि जो तू गर देख ले दर्पण, तो वो भी महक उठता है।
 
उनकी तारीफ की हंसी.. 
मेरे लबों से छूकर फिर उनकी आंखों से, टपकती खिलखिलाती है,
चांद के चांदनी नूर से सराबोर करती, मुझे कोहीनूर बना जाती है।
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