हिन्दी कविता : सूखे गुलाब

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निशा माथुर
सूखे हुए गुलाबों पर आ तेरी यादों के छंद लिखूं
गुलदान में जो महक रहे है उन पे कोई बंध लिखूं
 
दिलजोई मुलाकात पे महकी आखों का अनुबंध लिखूं
गहरे हुये गुलाबों से वो बिखरी प्यार की सुगंध लिखूं
चेहरा चांद गुलाब हो गया, बातें अब क्या चंद लिखूं
क्या जीती हूं मैं, क्या हारी हूं जीवन का निबंध लिखूं
 
तेरे जिस्म से छूकर गुजरे इन गुलाबों की गंध लिखूं
हौठों की जुम्बिश से महकायी छलकायी मकरंद लिखूं
 
थमें पांव है सांस-सांस के, धड़कन भी है मंद लिखूं,
अल्फाज करूं बयां तो आती हिचकी कैसे बंद लिखूं
 
मेरा इश्क किताबों सा सूखे फूलों की भीनी गंध लिखूं,
हसरतों ने की मोहब्बत रूह से रूह का संबंध लिखूं
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