हिन्दी कविता : गर्भिणी

WD
निशा माथुर 
वो तिल-तिल, तन-मन से हार दौड़ती
गर्भिणी! चिंतातुर सी, बढ़ता उदर लिए
झेलती चुभते शूल भरे अपनों के ताने
भोर प्रथम पहर उठती ढेरों फिकर लिए
 
एक बच्चा हाथ संभाले, एक कांख दबाए
कुदकती यूं अपनों की चिंता को लिए
तरा ऊपर तीसरे पर रखती पूरी आंख
जो चिंघता पीछे साड़ी का पल्लू लिए
झिल्ली लिपटे मांस लोथड़े की चेतना
उदर को दुलारती सैकड़ों आशीष दिए
दिन ब दिन फैली हुई परिधि में संवरती
विरूप गौलाई में क्षितिज का सूरज लिए
नए जीवन को स्वयं रक्त से निर्माण करती
फूले पेट की चौकसी में नींदे कुर्बान किए
धमनियों शिराओं से जीवन रस पिलाती
नवागंतुक के लिए संस्कारों का लहू लिए
 
फुर्सत क्षणों मे ख्यालों के धागे को बुनती
थकन से उनींदी सूजी आंखे हाथ लिए
हृदयस्पंदन, ब्रह्माड से आकार को बढ़ाती
संशय के मकड़जालों की जकड़न लिए
तीनों आत्माजाओं के मासूम चेहरे देखती
कहां जाएगी? गर फिर बेटी हुई, उसको लिए
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

पापा सिर्फ शब्द नहीं, पूरी जिंदगी का सहारा हैं...फादर्स डे पर इमोशनल स्पीच

वॉकिंग या जॉगिंग करते समय ना करें ये 8 गलतियां, बन सकती हैं आपकी हेल्थ की सबसे बड़ी दुश्मन

मानसून में हार्ट पेशेंट्स की हेल्थ के लिए ये फूड्स हैं बेहद फायदेमंद, डाइट में तुरंत करें शामिल

फादर्स डे पर पापा को स्पेशल फील कराएं इन खूबसूरत विशेज, कोट्स और व्हाट्सएप मैसेज के साथ

क्या आपको भी ट्रैवल के दौरान होती है एंग्जायटी? अपनाएं ये टॉप टिप्स और दूर करें अपना हॉलिडे स्ट्रेस

सभी देखें

नवीनतम

याददाश्त बढ़ाने के लिए आज से ही छोड़ दें अपनी ये 8 आदतें, दिमाग पर डालती हैं बुरा असर

मन सच्चा, कर्म अच्छा और बाकी सब महादेव की इच्छा... पढ़ें शिव जी पर लेटेस्ट कोट्स

हादसों पर 10 मशहूर शेर

स्किन के लिए जादुई है ग्रीन टी की पत्तियां, जानिए इससे बनने वाले ये 3 खास फेस पैक्स के बारे में

फादर्स डे 2025: पिता कब हो जाते हैं दुखी, जानिए 5 खास कारण

अगला लेख