नई कविता : करुणा...

देवेन्द्र सोनी
रोज देखता हूं
निश्चित समय पर
उस अर्द्धविक्षिप्त अधेड़ महिला को
जो निकलती है 
मेरे घर के सामने से
कटोरा लिए हाथ में।
 
उपजती है मन में पीड़ा
आता है कारुणिक भाव भी 
और होती है यह जिज्ञासा प्रबल
कि जानूं-समझूं उसके हालातों को।
 
सुन रखा था मैंने
अनेक लोगों से 
उसके स्वाभिमान के बारे में।
 
अंतत: एक दिन
रोक ही लिया मैंने उसे।
 
पूछने पर बताया उसने 
जान बचाकर जलती हुई 
भागी थी ससुराल से 
कर अपनी दुधमुंही बेटी को।
 
उमड़ी थी तब 
अनेक रिश्तों में करुणा 
अनचाही वासनायुक्त हमदर्दी
ठुकरा दिया था जिसे मैंने।
 
अब तो अरसा बीत गया है
झोपड़ी में रहती हूं 
भीख मांगकर
बेटी को पढ़ाती हूं।
इस साल जब नर्स बन जाएगी वह
ले सकूंगी चैन की अंतिम सांस।
 
बोली वह- बाबू, 
आजकल करुणा, दया, हमदर्दी 
सब दिखावा है 
स्वारथ का पिटारा है।
 
मय रहते समझ गई थी इसे 
इसीलिए हमदर्दी की नहीं 
स्वाभिमान की भीख मांगती हूं 
और आत्मसम्मान से जीती हूं। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

चलती गाड़ी में क्यों आती है नींद? जानें इसके पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण

सर्दियों में नाखूनों के रूखेपन से बचें, अपनाएं ये 6 आसान DIY टिप्स

क्या IVF ट्रीटमेंट में नॉर्मल डिलीवरी है संभव या C - सेक्शन ही है विकल्प

कमर पर पेटीकोट के निशान से शुरू होकर कैंसर तक पहुंच सकती है यह समस्या, जानें कारण और बचाव का आसान तरीका

3 से 4 महीने के बच्चे में ये विकास हैं ज़रूरी, इनकी कमी से हो सकती हैं समस्याएं

सभी देखें

नवीनतम

नैचुरल ब्यूटी हैक्स : बंद स्किन पोर्स को खोलने के ये आसान घरेलू नुस्खे जरूर ट्राई करें

Winter Skincare : रूखे और फटते हाथों के लिए घर पर अभी ट्राई करें ये घरेलू नुस्खा

Kaal Bhairav Jayanti 2024: काल भैरव जयंती पर लगाएं इन चीजों का भोग, अभी नोट करें

चाहे आपका चेहरा हो या बाल, यह ट्रीटमेंट करता है घर पर ही आपके बोटोक्स का काम

डायबिटीज के लिए फायदेमंद सर्दियों की 5 हरी सब्जियां ब्लड शुगर को तेजी से कम करने में मददगार

अगला लेख