हिन्दी कविता : बेटी

Webdunia
शनिवार, 29 अप्रैल 2017 (17:27 IST)
देवेंद्र सोनी
बेटी कल भी थीं, 
आज भी हो, आगे भी रहोगी
तुम पिता का नाज।
 
बीता बचपन, आई जवानी
छूटा वह घर, जिस पर था 
तुम्हारा ही राज।
कल भी था, आज भी है
आगे भी रहेगा
तुम्हारा ही यह घर।
 
पर अब, हो गया है एक
नैसर्गिक फर्क
 
मिल गया है तुम्हें 
एक और घर
जहां पिया संग बसाओगी तुम 
अपना मुकम्मल जहां 
पर यह होगा तभी
जब भूलोगी तुम, अपने बाबुल का घर।
 
जानता हूं यह हो न सकेगा तुमसे
पर भूलना ही होगा तुम्हें
बसाने को अपना घर।
 
यही नियम है प्रकृति का
नारी जीवन के लिए।
 
जब छूटता है अपना कोई
तब ही पाती है वह जीवन नया 
तब ही मिलती है पूरी समझ
आती है तभी चैतन्यता
 
होता है जिम्मेदारी का अहसास
बनता है तब एक नया घरौंदा
जहां मिलता है आत्म संतोष
मिलती है नारित्व को पूर्णता
 
और फिर जन्म लेता है 
आने वाला कल, जिसके लिए 
तुम्हारा जन्म हुआ है 
मेरी बेटी।      
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

सावन में कढ़ी क्यों नहीं खाते? क्या है आयुर्वेदिक कारण? जानिए बेहतर विकल्प

हर किसी के लिए सुरक्षित नहीं होता आइस बाथ, ट्रेंड के पीछे भागकर ना करें ऐसी गलती

सावन में हुआ है बेटे का जन्म तो लाड़ले को दीजिए शिव से प्रभावित नाम, जीवन पर बना रहेगा बाबा का आशीर्वाद

बारिश के मौसम में साधारण दूध की चाय नहीं, बबल टी करें ट्राई, मानसून के लिए परफेक्ट हैं ये 7 बबल टी ऑप्शन्स

इस मानसून में काढ़ा क्यों है सबसे असरदार इम्युनिटी बूस्टर ड्रिंक? जानिए बॉडी में कैसे करता है ये काम

सभी देखें

नवीनतम

वजन घटाने से लेकर दिमाग तेज करने तक, माचा टी है सबका हल

क्यों आते हैं Nightmares? बुरे सपने आने से कैसे खराब होती है आपकी हेल्थ? जानिए वजह

बारिश के मौसम में बैंगन खाने से क्या होता है?

सावन में भोलेनाथ के इन 10 गुणों को अपनाकर आप भी पा सकते हैं स्ट्रेस और टेंशन से मुक्ति

पवित्र, पावन, मनभावन सावन पर पढ़ें जोरदार निबंध, जानिए नियम, तिथियां और महत्व

अगला लेख