रचयिता- संगीता केसवानी
अजीब दास्तान है ख्वाबों की,
हक़ीक़त से परे, फिर भी नज़रबंद रहते हैं।
खोए सेहर के उजालों में,
निशा में समाए रहते हैं।
बदरंग इस दुनिया में,
रंगीन जिंदगियां सजाए रखते हैं।
बिखरी खाली झोली में,
उम्मीदों की रोशनी भरते हैं।
दूर क्षितिज खड़ी मंजिलों को,
कदमों से नहीं
हौसलों से करीब कर जाते हैं।
थकी-हारी इन सांसों में,
जीने की नई उमंग भर जाते हैं।
यूं तेरे-मेरे ख्वाब मिलकर,
हक़ीक़त का घरौंदा सजा जाते हैं।