हिन्दी में कविता : अब मुझे भगवान मिल गए

राकेशधर द्विवेदी
मैं एक सुबह उठकर
निकल पड़ता हूं
कार्यालय के लिए
दौड़कर मेट्रो को
पकड़ता हूं
और सीट पर बैठने
का प्रयास करता हूं
तब तक कोई दूसरा बैठ जाता है
मैं थका हारा देखता हूं
खिड़की से अनेक व्यक्तियों
को बड़ी गाडियों से जाते हुए 
मैं पराजित सा महसूस करता हूं
मैं कार्यालय में नोटिंग फाइल पर
नोटिंग लिखकर
बॉस के कमरे में ले जाता हूं
और झिड़क कर कक्ष से
बाहर कर दिया जाता हूं
कि आई पर बिन्दी नहीं रखी
मैं पराजित महसूस करता हूं
कुछ सुस्वादु भोजन खाने की
तलाश में शॉपिंग मॉल में घुस जाता हूं
किंतु भाव सुन पुनः
जेब में इकलौते नोट को
हाथ में दबाए
छोला-कुल्चा खाकर
अपनी क्षुधा को शांत करता हूं
मैं पराजित महसूस करता हूं
मैं तमाम पराजयों की गठरी लादें 
विजय की आशा में 
ढूंढता हुआ भगवान को 
अनेक मंदिर-मस्जिद और गिरजाघरों में 
शाम को अपने घर की कॉलबेल बजाता हूं
और दरवाजा खुलने पर
छह माह का नन्हा सा
बच्चा मुझसे लिपट जाता है
और अपने छोटे-छोटे हाथों से
मेरे दोनों गालों को सहलाता है
मैं उसके दैवीय स्पर्श से ऊर्जान्वित हूं
अपनी तमाम पराजयों को झाड़कर
फिर तैयार हो जाता हूं
दूसरे दिवस के विजय अभियान के लिए
अब मुझे भगवान मिल गए हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

खूबसूरत और हेल्दी बालों के दुश्मन हैं ये 5 सबसे खराब हेयर ऑयल्स, क्या आप भी कर रहे हैं इस्तेमाल?

डिहाइड्रेशन से लेकर वजन घटाने तक, गर्मियों में खरबूजा खाने के 10 जबरदस्त हेल्थ बेनिफिट्स

अखरोट के साथ ये एक चीज मिलाकर खाने के कई हैं फायदे, जानिए कैसे करना है सेवन

गर्मियों में वजन घटाने के दौरान होने वाली 8 डाइट मिस्टेक्स, जो बिगाड़ सकती हैं आपके फिटनेस गोल्स

केले में मिला कर लगाएं ये सफेद चीज, शीशे जैसा चमकने लगेगा चेहरा

सभी देखें

नवीनतम

इन कारणों से 40 पास की महिलाओं को वेट लोस में होती है परेशानी

लू लगने पर ये फल खाने से रिकवरी होती है फास्ट, मिलती है राहत

बच्चों की मनोरंजक कहानी : गुस्सा हुआ छू-मंतर

गुड फ्रायडे के खास व्यंजन कौनसे हैं?

उर्दू: हिंदुस्तान को जोड़ने वाली ज़बान-ए-मोहब्बत

अगला लेख