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क्षमा पर्व पर कविता : मिच्छामि दुक्कड़म्

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सुशील कुमार शर्मा

, गुरुवार, 28 अगस्त 2025 (14:56 IST)
शब्द छोटा है,
पर अर्थ महासागर जितना गहरा
'मिच्छामि दुक्कड़म्'
यानी जो भी गलती हुई,
वह मिट जाए,
शून्य हो जाए,
क्षमा की शीतल हवा में
मन का बोझ उतर जाए।
 
प्रकृति भी यही कहती है
पेड़ क्षमा करते हैं पतझड़ को,
सूरज क्षमा करता है अंधकार को,
और बारिश क्षमा करती है सूखे को।
तो फिर मनुष्य क्यों न करे?
 
पर्युषण पर्व की साधना
केवल व्रत और अनुशासन नहीं,
बल्कि भीतर झांकने का अवसर है
जहाँ हमें अहसास होता है
कि सबसे बड़ी विजय
क्रोध पर विजय है,
और सबसे बड़ी शक्ति
क्षमा की शक्ति है।
 
जब मैं कहता हूँ 
'मिच्छामि दुक्कड़म्'
तो यह केवल वाणी का 
उच्चारण नहीं,
बल्कि आत्मा का प्रणाम है
उस हर व्यक्ति के लिए
जिसे कभी दुख पहुंचाया,
चाहे जानबूझकर,
या अनजाने में।
 
क्षमा ही धर्म का हृदय है,
क्षमा ही संबंधों की डोर है,
क्षमा ही आत्मा की 
सच्ची शांति है।
 
आइए, इस पर्व पर
मन के भीतर छिपे 
अहंकार को
गला दें,
रिश्तों की रूखी शाखाओं पर
फिर से हरियाली उगा दें।
 
क्योंकि
जहां क्षमा है, वहीं करुणा है,
जहां करुणा है, वहीं सच्चा धर्म है,
और जहां धर्म है,
वहीं जीवन की मुक्ति का मार्ग है।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है।)

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