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15 अगस्त पर आज़ादी का महत्व दर्शाती कविता: स्वतंत्रता का सूर्य

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सुशील कुमार शर्मा

, गुरुवार, 14 अगस्त 2025 (10:16 IST)
वह सुबह
जब आसमान ने पहली बार
गुलाल की लालिमा से
तिरंगे के रंग रचे थे,
जब धरती ने अपनी देह पर
शहीदों के रक्त का सिंदूर सजाया था,
और हवा में पहली बार
गूंजी थी
'हम आज़ाद हैं!'
 
यह आज़ादी
किसी दस्तावेज़ से नहीं आई थी,
न किसी समझौते की मेज से,
यह तो आई थी
तोप के धुएं,
फांसी के फंदों,
और जेल की काल कोठरियों की
गंध से लिपटी हुई।
 
वो मंगल पांडे का विद्रोह था,
जो गोली से नहीं
ज्वाला से जन्मा था।
वो भगत सिंह का हंसता हुआ चेहरा था,
जिसे मौत भी झुककर सलाम कर गई।
वो चंद्रशेखर आज़ाद का संकल्प था,
जो आखिरी गोली अपने लिए बचाकर
आजाद ही रहा।
वो नेताजी का बिगुल था—
'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा'
जिसने नींद उड़ा दी थी गुलामी की।
 
यह आज़ादी
गांधी के सत्याग्रह की दृढ़ता थी,
नेहरू के सपनों की ऊंचाई थी,
सरदार पटेल की लौह इच्छाशक्ति थी,
मौलाना आज़ाद की शिक्षा का उजास था।
 
हमारे खेतों में तब
गेहूं नहीं, उम्मीदें उगती थीं,
हमारे घरों में
अंग्रेज़ी हुकूमत का भय नहीं
बल्कि आज़ादी का गीत गूंजता था।
 
और फिर
वह दिन आया
15 अगस्त 1947।
जब तिरंगे की छांव में
हमने पहली बार
अपना भविष्य अपने हाथों में थामा।
 
पर,
आज यह सवाल हमारे सामने है
क्या हम वैसी ही कीमत
अदा कर रहे हैं,
जैसी हमारे पूर्वजों ने की थी?
क्या हम स्वतंत्रता को
सिर्फ छुट्टी का दिन मान चुके हैं,
या यह हमारे कंधों का भार है?
 
स्वतंत्रता का अर्थ
केवल पराई सत्ता से मुक्ति नहीं,
यह अपने भीतर के डर से आज़ादी है,
भ्रष्टाचार, अन्याय,
और असमानता की जंजीरों को
तोड़ना है।
 
आज के युवाओं,
तुम्हारे हाथ में मोबाइल है,
पर क्या उसमें
देश की मिट्टी की खुशबू है?
तुम्हारे पास आज़ादी है,
पर क्या उसमें
बलिदान का स्वाद है?
 
हमारे लिए आज़ादी का मतलब होना चाहिए
बच्चों की आंखों में सपनों का होना,
किसान के खेत में हरेपन का होना,
सीमाओं पर खड़े सैनिक के चेहरे पर
विश्वास का होना,
न्यायालय में सत्य का होना,
और सड़कों पर
मानवता का होना।
 
आओ,
आज प्रतिज्ञा करें
कि हम इस स्वतंत्रता को
कभी क्षीण नहीं होने देंगे,
इसे आने वाली पीढ़ियों तक
अक्षुण्ण पहुंचाएंगे।
कि जब इतिहास
भविष्य से कहेगा—
'ये थे वो लोग
जिन्होंने स्वतंत्रता को संभाला'
तो वह गर्व से
हमारा नाम लेगा।
 
तिरंगे की तीन धाराओं की तरह
हम भी एक होकर,
श्वेत की पवित्रता,
हरे की समृद्धि,
और केसरिया की वीरता
को अपने जीवन में उतारेंगे।
 
क्योंकि यह सिर्फ झंडा नहीं है,
यह उस रक्त, उस त्याग,
और उस स्वप्न का प्रतीक है
जिसकी कीमत
किसी भी युग में
कम नहीं आंकी जा सकती।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है।)ALSO READ: ध्वज संहिता: 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर कैसे फहराएं तिरंगा, क्या है नियम?
 

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