हिन्दी कविता : देश के गांवों को सलाम

Webdunia
- रवि श्रीवास्तव 
 


 
लगा सोचने बैठकर इक दिन, शहर और गांवों में अंतर,
बोली यहां की कितनी कड़वी, गांवों में मीठी बोली का मंतर।
 
आस-पास के पास-पड़ोसी, रखते नहीं किसी से मतलब,
मिलना और हाल-चाल को, घर-घर पूछते गांवों में सब,
 
भागदौड़ की इस दुनिया में, लोग बने रहते अनजान,
गांवों में होती है अपनी, हर लोगों की इक पहचान।
 
खुशियां हो या फिर हो गम, शहर में दिखता है कम,
गांव के लोगों में होता है, साथ निभाने का पूरा दम।
 
हर जगह होता प्रदूषण, जिससे बनती बीमारी काली,
सुंदरता का एहसास कराए, हवा सुहानी गांव की हरियाली।
 
पैसा बना जरूरत सबकी, बढ़े लोग तभी शहर की ओर
कच्चे रेशम की नहीं है, गांवों की वो प्यार की डोर।
 
नहीं बचा पाए हैं देखो, अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति
गांवों में आज भी बरकरार, भारतीय सभ्यता, भारतीय संस्कृति।
 
पहचान नहीं तो क्या हुआ, पानी को लोग पूछते हैं,
वहीं शहर में पानी के लिए, लोग दरवाजे से लौटते हैं।
 
कैसे बदले शहर के लोग, कैसा है उनका ये झाम,
गर्व से करता हूं, मैं तो देश के गांवों को सलाम।
 
 
Show comments

इन विटामिन की कमी के कारण होती है पिज़्ज़ा पास्ता खाने की क्रेविंग

The 90's: मन की बगिया महकाने वाला यादों का सुनहरा सफर

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

गर्मियों में ये 2 तरह के रायते आपको रखेंगे सेहतमंद, जानें विधि

गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों के साथ जा रहे हैं घूमने तो इन 6 बातों का रखें ध्यान

जीने की नई राह दिखाएंगे रवींद्रनाथ टैगोर के 15 अनमोल कथन

मेरी अपनी कथा-कहानी -प्रभुदयाल श्रीवास्तव

07 मई: गुरुदेव के नाम से लोकप्रिय रहे रवीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती

इस चाइनीज सब्जी के आगे पालक भी है फैल! जानें सेहत से जुड़े 5 गजब के फायदे

आइसक्रीम खाने के बाद भूलकर भी न खाएं ये 4 चीज़ें, सेहत को हो सकता है नुकसान