मेरे बचपन में मेरी मां ने एक किस्सा सुनाया
कि गंगा मां को आर-पार की पियरी चढ़ाई
और बदले में पुत्ररत्न का उपहार पाया,
धीरे-धीरे मैं बड़ा होकर अपने यौवन अवस्था में
पुनः उसी नदी के तट पर नौका विहार करने आया
और नदी की चंचल लहरों ने अपने निर्मल जल से दुलार कर
मेरे उज्जवल जीवन के शुभकामना संदेश को सुनाया
आज जीवन के अंतिम समय में
मेरे तमाम नातेदार, रिश्तेदार
मेरे निर्जीव नश्वर शव को
रख आए नदी के तट पर
और तिरोहित कर दिया सारा प्यार दुलार
भाव अनुराग, यह समझकर कि डुबो देगी नदी
इन्हें मेरे साथ अतल गहराई में
लेकिन नहीं, नदी की लहरों ने नहीं डुबोया मुझे
लगाकर अपने वक्षस्थल से घुमाती रही पूरे नदी तट पर
कुछ इस तरह जैसे कोई मां अपने
नवजात शिशु को स्तनपान करा रही हो।
और दुनिया को यह बता रही है ये मेरा अंश है
और उद्घाटित कर रही इस सत्य को वह नदी नहीं मां है।