हिन्दी कविता : रजनीगंधा...

सुशील कुमार शर्मा
प्रतिलिपि कविता सम्मान हेतु
 
रजनीगंधा फूल-सा, 
महक उठा संसार। 
प्रिय संगम ऐसा हुआ, 
तन पर चढ़ा खुमार। 
 
तन पर चढ़ा खुमार, 
प्रमुदित हृदय का आंगन। 
रजनीगंधा खिला, 
आज जीवन के मधुवन। 
 
कह सुशील कविराय, 
खिला तन प्रेम सुगंधा। 
अनुपम रूप अनूप, 
देह है रजनीगंधा। 
 
रजनीगंधा की महक, 
फैली चारों ओर। 
प्रीतम मादक हो रहे, 
चला नहीं कछु जोर। 
 
चला नहीं कछु जोर, 
बांह जरा ऐसी जकड़ी। 
तन में उठत मरोड़, 
कलाई ऐसी पकड़ी। 
 
कह सुशील कविराय, 
प्रेम बिन जीवन अंधा। 
मृदुल प्रेम प्रिय संग, 
मन बना रजनीगंधा। 
 
 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

क्या आप भी शुभांशु शुक्ला की तरह एस्ट्रोनॉट बनना चाहते हैं, जानिए अंतरिक्ष में जाने के लिए किस डिग्री और योग्यता की है जरूरत

हार्ट अटैक से एक महीने पहले बॉडी देती है ये 7 सिग्नल, कहीं आप तो नहीं कर रहे अनदेखा?

बाजार में कितने रुपए का मिलता है ब्लैक वॉटर? क्या हर व्यक्ति पी सकता है ये पानी?

बालों और त्वचा के लिए अमृत है आंवला, जानिए सेवन का सही तरीका

सफेद चीनी छोड़ने के 6 जबरदस्त फायदे, सेहत से जुड़ी हर परेशानी हो सकती है दूर

सभी देखें

नवीनतम

क्या संविधान से हटाए जा सकते हैं ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ जैसे शब्द? क्या हैं संविधान संशोधन के नियम

सिरदर्द से तुरंत राहत पाने के लिए पीएं ये 10 नैचुरल और स्ट्रेस बस्टर ड्रिंक्स

'आ' से अपनी बेटी के लिए चुनिए सुन्दर नाम, अर्थ जानकर हर कोई करेगा तारीफ

आषाढ़ अष्टाह्निका विधान क्या है, क्यों मनाया जाता है जैन धर्म में यह पर्व

आरओ के पानी से भी बेहतर घर पर अल्कलाइन वाटर कैसे बनाएं?

अगला लेख