हिन्दी कविता : सच्चाई का तराजू...

शम्भू नाथ
सच्चाई का तराजू,
खुद ही लचीला है। 


 
इसीलिए यहां का, 
शासन भी ढीला है।
 
होते बुरे काम हैं, 
हंसती बुराई है। 
लोग बोल पाते नहीं, 
सच क्या सच्चाई है।
 
न्याय का स्तंभ, 
यहां पहले से हीला है।
 
सच्चाई का तराजू, 
खुद ही लचीला है।
इसीलिए यहां का, 
शासन भी ढीला है।
 
मादक पदार्थ खुल्ला बिकते, 
होते सौदेबाजी है।
अफसर की मौज है, 
नेता की आजादी है। 
 
सच के लाठी का, 
कैसे ये लीला है।
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