जैसे ओस की बूँद एक गुलाब पर

प्रेम कविता

रवींद्र व्यास
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जैसे

ओस की बूँद एक गुलाब पर ठहरती हैं

मैं तुम्हारी देह पर ठहर जाऊँगा

जैसे

रात के आँचल में चंद्रमा मचलता है

मैं तुम्हारी देह में मचल जाऊँगा

जैसे एक घने जंगल में नदी बहती है

मैं तुम्हारी देह में बहता रहूँगा

और जैसे एकदम सुबह-सुबह

एक तारा टूटकर बिखर जाता है

मैं तुम्हारी आत्मा के आकाश में बिखर जाऊँग ा।

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