तुझे जब से चाहा

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श्याम सख ा ' श्या म'
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बने फिरते थे जो जमाने में शातिर
पहाड़ों तले आए वे ऊँट आखिर

छुपाना है मुश्किल इसे मत छुपा तू
हमेशा मुहब्बत हुई यार जाहि र

बना कैस राँझा बना था कभी मैं
मेरी जान सचमुच मैं तेरी ही खाति र

खुदा को भुलाकर तुझे जब से चाहा
हुआ है खिताब़ अपना तब से काफ़ि र

बनी को बिगाड़े, बनाए जो बिगड़ी
कहें लोग उसी को तो हरफन में माहि र

मुझे छोड़ कर तुम कहाँ जा रहे हो
हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफि र

छुपाने में जिसको थे मशगूल सारे
वही बात कैसे हुई यार जाहि र

तेरी खूबियाँ ' श्याम' सब ही तो जाने सब पर हैं जाहिर
खुशी हो के हो ग़म तू हरदम है शाकिर।

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