प्यास का हकदार रहने दे

Webdunia
- सुरेंद्र चतुर्वेदी
ND

समंदर हूँ मगर तू प्यास का हक़दार रहने दे,
तसल्ली पास रख अपने मुझे बेज़ार रहने दे।

मिलन है चंद लम्हों का बिछुड़ना उम्र भर का है,
मुना‍‍सिब तो यही है बीच इक दीवार रहने दे।

मेरे अहसास रद्दी हो गए हैं सच कहा तूने,
गई तारीख़ वाला ही सही अख़बार रहने दे।

किसी इक मोड़ पे मुमकिन है मैं भी काम आ जाऊँ,
कहानी में कहीं मेरा भी इक किरदार रहने दे।

हैं इस संसार की रस्में तो ज़हरीली हवा जैसी,
बसाया है जो आँखों में वहीं संसार रहने दे।

अगर तू फूल है तो लोग खुद महसूस कर लेंगे,
जु़बाँ से खुशबूओं की अपनी तू इज़हार रहने दे।

इसी की नोंक से मैं दुश्‍मनों का सर कुचल दूँगा,
कलम काफी है मेरे हाथ में, तलवार रहने दे।

साभार- संबोधन

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