प्रेम-दोहे फागुन के

काव्य-संसार

Webdunia
प्रदीप दुबे 'दीप'
ND
फागुन आँगन डाल दी, ऐसी क्या सौगात
पीपल भी करने लगा, बहकी-बहकी बात।

मौसम ने सुलझा दिए, उलझे प्रेम सवाल
इत आँखों में रंग है तो उत लाल गुलाल

देख रहा अपना असर चुपके से मधुमास
छैल-छबीली बन गई, बहकी उम्र कपास

महकी-महकी नींद में, बहके-बहके ख्वाब
तकिए के नीचे रखे, किसने खिले गुलाब

मौसम से बतिया रहा, हँसकर सुर्ख गुलाब
क्यों ना बारहमास का, करवा दो मधुमास

बजे पवन की बाँसुरी, नचे रंगीले फूल
खेत-खेत सरसों नचे, ओढ़े पीत दुकुल

मौसम भी बौरा गया, मिल फागुन के साथ
गिरी छूटकर हाथ से, रंगों की दवात

नहीं चलाई तात ने, कहीं ब्याह की बात
सरसों के भी हो गए अब तो पीले हाथ

गली-गली में बावला, फागुन करे धमाल
इधर गुमी मुंदरी कहीं, उधर गुमा रूमाल

आ हिल-मिलकर बाँट लें, आज मिले जो फूल
मौसम का विश्वास क्या? फिर कब हो अनुकूल।
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