फिर भी मैं गुनहगार हुआ

Webdunia
योगेन्द्र दत्त शर्मा
ये हादसा भरी महफ़िल में बार-बार हुआ,
तलाश थी हमें जिसकी, वही फ़रार हुआ।

ये दौर क्या है, ये कैसा अजीब मौसम है,
शहीद मैं हुआ, पर किसको ऐतबार हुआ।

मेरे शहर में ये कैसी हवा चली यारो,
मैं क़त्ल भी हुआ, फिर भी मैं गुनहगार हुआ।

मैं फूल बनके चमन में महक लुटाता रहा,
मेरा वजूद मगर काँटों में शुमार हुआ।

तमाम उम्र भटकती रही ख़लाओं में,
मेरी सदा का, भला किसको इंतज़ार हुआ।

WDWD
मेरे बनाए गए रास्ते थे, पर उनसे
मेरा गुज़रना रक़ीबो को नागवार हुआ।

जो ख़ुशबुओं का गला घोटने में माहिर था,
वो रातों-रात ही ख़ुशबू का इश्तहार हुआ।

मुझे मिटाके, चला है सँवारने सब्ज़ ा,
सितमज़रीफ़ बड़ा मौसमे-बहार हुआ।

उसी ने मुझको डसा साँप की तरह आख़िर
कभी जो शौक़ से मेरे गले का हार हुआ।

साभार : समकालीन साहित्य समाचार

Show comments

वजन घटाने से लेकर दिमाग तेज करने तक, माचा टी है सबका हल

मधुमेह रोगियों को सावन व्रत में क्या खाना चाहिए, जानें डायबिटिक व्रत भोजन की सूची और 6 खास बातें

क्यों आते हैं Nightmares? बुरे सपने आने से कैसे खराब होती है आपकी हेल्थ? जानिए वजह

बारिश के मौसम में बैंगन खाने से क्या होता है?

सावन में भोलेनाथ के इन 10 गुणों को अपनाकर आप भी पा सकते हैं स्ट्रेस और टेंशन से मुक्ति

सिर्फ नौकरी नहीं, उद्देश्यपूर्ण जीवन चुनिए

बारिश के मौसम में आंखों में हो सकती हैं ये 5 गंभीर बीमारियां, जानिए कैसे करें देखभाल

1 चुटकी नमक बन रहा मौत का कारण, उम्र कम होने के साथ बढ़ जाता है इन बीमारियों का खतरा

कुत्तों के सिर्फ चाटने से हो सकती है ये गंभीर बीमारी, पेट लवर्स भूलकर भी न करें ये गलती

राजा हरि सिंह पर खान सर की टिप्पणी से छिड़ा विवाद, जानिए कश्मीर के भारत में विलय की पूरी कहानी