फूल उम्मीद के खिले होते

चाँद शुक्ला हदियाबादी

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दरमियाँ यूँ ना फासले होते

काश ऐसे भी सिलसिले होते

हमने तो मुस्करा के देखा था

काश वो भी ज़रा खुले होते

जिन्दगी तो फरेब देती है

मौत से काश हम मिले होते

अब के चारों तरफ़ अँधेरा है

दीप उम्मीद के जले होते

हम जुबाँ पे न लाते उनकी बात

होंठ अपने अगर सिले होते

अपनी हम कहते उनकी भी सुनते

शिकवे रहते न फ़िर गिले होते

काश अपने उदास आँगन में

फूल उम्मीद के खिले होते

कट ही जाती सफर की लम्बी रात

" चाँद" तारों के काफिले होते

साभार : स्वर्ग विभा

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