बनके खुशबू महकती रहीं बेटियाँ

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डॉ. अनु सपन
NDND
मेरे घर में चहकती रहीं बेटियाँ
शहरभर को खटकती रहीं बेटियाँ

ओढ़कर स्वप्न सारा शहर सो गया
राह पापा की तकती रहीं बेटियाँ

अब की तनख्वाह पे ये चीज लाना हमें
कहते-कहते झिझकती रहीं बेटियाँ

बेटी होना है अपराध इस देश में
सुनते-सुनते सिसकती रहीं बेटियाँ

छोड़ माँ, बाप, बेटा, बहू चल दिए
बनके खुशबू महकती रहीं बेटियाँ

अम्मा, दादा के आँसू के अंगार पर
बनके बदली बरसती रहीं बेटियाँ

सज के दुल्हन नई जब जली हो कहीं
मन ही मन में दहकती रहीं बेटियाँ

इस जमाने ने शर्मोहया, बेच दी
राह चलते सहमती रहीं बेटियाँ।

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