बांसुरी-सी बज रही है सुन जरा

गजल

Webdunia
ओम प्रभाकर
WD
तू अभी से सो रही है, सुन जरा
रातरानी महकती है सुन जरा।

सुन जरा मेरे लबों की तिश्नगी
‍ तिश्नगी भी चीखती है सुन जरा।

कुछ दिनों से क्यूं हमारे दरम्यां
बांसुरी-सी बज रही है सुन जरा।

हदे-शोरो-गुल ये मेरी खामुशी
बेनवा कुछ कह रही है सुन जरा।

हां, अभी भी गोशा-ए-दिल में कहीं
एक नागिन रेंगती है, सुन जरा।
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