यादों में चहकती गोरैया

फाल्गुनी

Webdunia
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मेरी यादों के झरोखे में
चहकती है गोरैया
अतीत के झुरमुट से झाँकती हुई
कितने ही सवालों के दाने
बिखेर देती है।

उसकी नन्ही सी चोंच में
शायद मेरा भविष्य था
जिसे नहीं गिराया उसने भूल कर भी

करती रही मैं प्रतीक्षा
उसके गंभीर होने की
मगर वह चंचल-सी रही
हर पल
और एक दिन
मेरी यादों का चहकता हिस्सा बन कर
उड़ गई फुर्र से।
ना कभी वह हो सकी स्थिर
और ना कभी पूरी हुई मेरी प्रतीक्षा।

आज जब झाँकती है गोरैया
मेरी यादों के मखमली झरोखों से
तो ना जाने क्यों
याद आता है वह सब
जब मेरे भविष्य का नाजुक पल
किसी नन्ही चोंच से
बेसाख्ता गिर गया था
लेकिन मैं नहीं उड़ सकी थी फुर्र से
गोरैया की तरह।
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