ये सपने क्षणभंगुर

- रूचि बागड़देव

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ये सपने क्षणभंगुर

हैं साबुन के बुलबुले

पल में बनते पल में टूटते,

हैं रेत के महल

एक कोमल हवा के झोंके से गिर जाते

इस दिल में चाह जगाकर

रात के गुमनाम अँधेरों में खो जाते।

ये सपने क्षणभंगुर

चोरी से आँखों के रास्ते दिल में बसकर,

अचानक एक पल की करवट से टूट जाते,

पर ये आँखें एक सपने के टूटने के बाद

फिर गढ़ लेती हैं एक नया सपना

उसके पूरा होने की चाह में।

साभार : लेखिका 08

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