रिमझिम महकती फुहारों की कसम बरखा के दमकते मोती कोंपलों के मुहाने पर जब भी चम-चम चमके हैं मेरे मन के कोरे आँगन में तुम्हारी यादों के बादल झर-झर कर बरसे हैं।
रुनझुन नशीली बूँदों की कसम धरती पर आकर जब भी जल के दीपक थिरके हैं मेरी आँखों की मुँडेर पर तुम्हारी प्रतीक्षा के अनार टूट-टूट कर बिखरे हैं।
झमाझम लहराते सावन की कसम मौसम ने जब भी मुस्कुराकर हरा रंग पहना है मेरे मन के धुसर होते रंगों ने इन्द्रधनुषी त ुलिका को चुन ा है।
गड़-गड़ गरजते बादलों की कसम मचलती बिजली ने जब भी पूरी कायनात को हिलाया है मेरे अन्तर्मन को तुम्हारी दूरियों के झोंकों ने जार-जार र ुलाया है।
सौंधी-सौंधी मिट्टी की कसम नन्ही कलियों ने उसमें लिपट जब भी खिलते हुए मुझे दुलराया है मेरे हाथों को, तुम्हारे हाथों ने ख्वाबों में देर तक सहलाया है।