शब्द का संग छूटा, तो रंगों ने थाम लिया

कवयित्री और चित्रकार चम्पा वैद से विशेष बातचीत

रवींद्र व्यास
NDND
वे कविता लिखती हैं, लेकिन मन इन दिनों पेंटिंग्स में रमा हुआ है। शब्द का संग छूटता लग रहा है और रंगों ने उनका हाथ थाम लिया है। वे उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जहाँ अक्सर लोग थककर खामोश हो जाते हैं, परंतु वे रंगों के साथ हमकदम हैं। बिना थके, बिना रुके वे लगातार चित्र बना रही हैं। ये हैं कवयित्री और चित्रकार चम्पा वैद। वे 78 पार हैं, लेकिन रंगों में उनकी रचनात्मकता का यौवन झलकता है। हैरतअंगेज यह है कि 77 वर्ष की उम्र में उन्होंने पेंटिंग्स बनाना शुरू किया।

  श्रीमती वैद कहती हैं- मैं खुश हूँ कि मेरे सपनों में रंग और इमेजेस आते हैं और मैं चित्र बना रही हूँ लगातार। खुशी यह भी है कि कला प्रेमी और कला पारखी कहते हैं कि इन पर किसी का प्रभाव भी नहीं। लेकिन दुःख इस बात का है कि शब्दों का साथ छूटता जा रहा है।      
एक विशेष बातचीत में श्रीमती वैद ने कहा - मुझे खुद नहीं पता कि यह चमत्कार कैसे हुआ? मैं बीमार थी और कविता भी नहीं लिख पा रही थी। बेचैनी थी। एक दिन अचानक पेंसिल उठाई और चित्र बनाया। बस कहीं से सोता फूट निकला और मैं बहती चली गई। फिर एकाएक रंग आ गए, कागज आ गए, हाथों ने कलम की जगह कूची थाम ली। और इस तरह चित्र बनते चले गए। ऐसा लगा कि मन के भीतर कहीं बहुत गहराई में कुछ भरा पड़ा था, उसे एकाएक रास्ता मिल गया, रंगों के जरिए, आकारों के जरिए।

इसके बाद वे रुकी नहीं और यही कारण है कि उनके चित्रों की दो समूह प्रदर्शनियाँ हो चुकी हैं और यह दूसरी एकल प्रदर्शनी है- ' स्क्रिप्ट्स' । उनकी तीसरी एकल नुमाइश 'डान ऑफ द डस्क' शीर्षक से तीन जून से इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित है, जिसमें उनके 25 काम प्रदर्शित होंगे। उनके इन चित्रों का चयन किया है कला समीक्षक वर्षा दास और पत्रकार ओम थानवी ने।

देवलालीकर कला वीथिका में उनके कैनवास और पेपर पर एक्रिलिक से बने चित्र प्रदर्शित होंगे। श्रीमती वैद कहती हैं- मैं खुश हूँ कि मेरे सपनों में रंग और इमेजेस आते हैं और मैं चित्र बना रही हूँ लगातार। खुशी यह भी है कि कला प्रेमी और कला पारखी कहते हैं कि इन पर किसी का प्रभाव भी नहीं। लेकिन दुःख इस बात का है कि शब्दों का साथ छूटता जा रहा है। मैं कविता नहीं लिख पा रही।

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