साहित्यकार खेमेबाजी से दूर रहें : प्रो.जैन

प्रो.अक्षय कुमार जैन से विशेष साक्षात्कार

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देश को भले ही 15 अगस्त 1947 को आजादी मिल गई थी, लेकिन भोपाल में इसे पाने के लिए एक और आंदोलन करना पड़ा था। नवाब के खिलाफ एकजुट हुए प्रजामंडल के सदस्यों ने पं. नेहरू से मिलकर भोपाल को भारतीय गणतंत्र में शामिल करवाने का आग्रह किया था। इसी पहल और लंबे संघर्ष के बाद 1949 में भोपाल रियासत भारत में विलीन हुई।

भोपाल की इस दूसरी आजादी के कर्ताधर्ता प्रो. अक्षय कुमार जैन इस आंदोलन को ही अपने जीवन की सफलता मानते हैं। 90वें जन्मोत्सव पर आयोजित शतायु कामना महोत्सव के प्रसंग पर प्रो. जैन ने ऐसे कई अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि हम तभी सफल नागरिक हैं जब अपने समय के जनसंघर्ष में शामिल होते हैं। जनसंघर्ष में शामिल नहीं हुए, तो अपना अस्तित्व बेकार है।

भोपाल के विलीनकरण आंदोलन को याद करते हुए वे बताते हैं कि 'भारत वर्ष में अंग्रेजों के आधिपत्य में जितना भारत का अंश था उसमें 640 छोटी-बड़ी रियासतें थीं, जिनमें भोपाल भी था। यहाँ के नवाब हमीदुल्ला खाँ ने आजादी के बाद भोपाल को गणतंत्र में विलय करने से इनकार कर दिया था। इसी कारण विलीनिकरण आंदोलन खड़ा करना पड़ा।

कांग्रेस के नेता पट्टाभिसीतारमैया रियासती मामलों के अध्यक्ष थे। पंडित नेहरू और उनकी प्ररेणा से प्रजामंडल के अंतर्गत आंदोलन किए गए। भोपाल में मास्टर लालसिंह साहब 1947 में प्रजामंडल के अध्यक्ष बनें। बाद में इस आंदोलन को पंडित चतुरनारायण मालवीय ने दिशा दी और भाई रतनकुमार जी, बालकृष्ण गुप्ता, सूरजमल जैन के साथ आंदोलन में कूद पड़े। भूतपूर्व विधायक सुश्री लीला राय और उनकी बहन रूक्मिणी राय द्वारा प्रभात फेरी आदि के माध्यम से महिलाओं में जागरूकता फैलाई गई और नवाबी शासन के व िर ुद्घ गांधीवादी विरोध दर्ज कराया गया।

मैंने, रतनकुमार, बालकृष्ण गुप्ता ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से भेंट कर उन्हें प्रजामंडल आंदोलन से अवगत कराया और भोपाल रियासत को गणतंत्र में विलय करने का अनुरोध किया। उन्होंने पट्टाभिसीतारमैया से मिलने की सलाह दी, हमने अमल किया। विलीनीकरण आंदोलन में दुर्ग और रायपुर के पास बौरास के थानेदार ने 'वंदे मातरम' पर रोक लगाई और 16 वर्षीय छोटेलाल को नवाब भोपाल की शह पर गोली मार दी। यह एक जवान शहादत थी। विलीनीकरण आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी पत्रिका 'नई राह' ने भोपाल की आजादी के संदेश और संघर्ष को दूर तक पहुँचाया। 1949 के अंत तक बड़े संघर्ष के बाद भोपाल का विलय गणतंत्र में हो सका।"

निष्कंलक राजनीतिक छवि वाले प्रो जैन ने बदलती राजनीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राजनीति के मानदंड परिस्थितियों के मुताबिक बदलते रहते हैं। पार्टी अच्छी या बुरी नहीं होती उसे चलाने वाले लोग अच्छे या बुरे होते हैं। साहित्य में खेमेबाजी के विषय में वे बोले कि साहित्य सृजन और बात है और साहित्य संगठन और बात। साहित्यकार को खेमेबाजी में न पड़कर मनुष्य हित के लिए कार्य करते रहना चाहिए।

नौ दशकों की अविराम यात्रा के महान साहित्यकार, चिंतक, शिक्षक, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सेवी की अनवरत निष्ठा के विराट प्रतीक और भोपाल की उर्दू-हिन्दी सृजनमेधा के साक्षी अजातशत्रु बाबू अक्षय कुमार जैन के लिए भोपाल की साहित्य-संगीत एवं कला संस्थाओं ने उनके शतायु होने के कामना की।

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