पुरुष स्त्री का बस शोषण करते हैं...

कथाकार कृष्णा अग्निहोत्री का कहना है

रवींद्र व्यास
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वे डरती नहीं। न बोलने से, न लिखने से। मन का लिखने से न कभी अपने को रोका, न टोका। आत्मकथा लिखी। उसमें अपने मन और शऱीर के छिलके उतारे। अपने अनुभवों में आए महानुभावों के छिलके भी उतारे। कटु-मृदु अनुभव पहले भी वे बेधड़क-बेहिचक लिखती रहीं, अब भी लिख रही हैं। उनकी आत्मकथा 'लगता नहीं है दिल मेरा' का दूसरा भाग भी अच्छा खासा विवाद पैदा करेगा।

यह अगले माह बाजारों में होगा। वे अब तक 34 किताबें लिख चुकी हैं जिसमें उपन्यास, कहानी संग्रह, रिपोर्ताज, आत्मकथा और अन्य किताबें शामिल हैं। पुरस्कार भी हासिल किए हैं। ये हैं कहानीकार-उपन्यासकार कृष्णा अग्निहोत्री, अपने चौहत्तरवें साल में।

आत्मकथा के बारे में
शरीर भारी और थकान तारी, फिर भी उनकी रचनात्मकता जारी। वे कहती हैं-आत्मकथा के दूसरे भाग के साथ ही एक उपन्यास भी जुलाई में छपकर आने वाला है। मैंने अपनी आत्मकथा में कुछ भी दबाया-छिपाया नहीं है। मैंने जो भुगता, महसूसा वह बिना किसी लाग-लपेट के लिख दिया। मैं उन लोगों को बेनकाब करना चाहती थी, जो स्त्री का आदर औऱ प्रेम करने का ढोंग करते हैं लेकिन असल में वे उसका शोषण करते हैं। मैंने जो लिखा नामजद लिखा।

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साहित्यकार राजेंद्र यादव ने कहीं लिखा था कि हिंदी की लेखिकाएँ आत्मकथा नहीं लिख सकतीं, मैंने लिख के बताया और जब यह छपकर आई तो मुझे पाँच सौ से ज्यादा फोन आए, कई अच्छी-बुरी प्रतिक्रियाएँ मिलीं, पाठकों ने ढेरों पत्र लिखे। जो नाराज हुए, वे कुछ कह नहीं पाए क्योंकि जो लिखा था वह सच्चा था। मेरी पीड़ा सच्ची थी, मेरा दुःख नंगा था। आत्मकथा लिखने से पहले मैंने अमृता प्रीतम की रसीदी टिकट पढ़ी और मुझे लगा कि उन्होंने जितना बताया है उससे कहीं ज्यादा छिपाया है। बच्चनजी की आत्मकथा भी पढ़ी लेकिन मुझे लगा मैं लिखूँगी तो कुछ छुपाऊँगी नहीं।

नए उपन्यास के बारे में
मेरा नया उपन्यास तीन पीढ़ियों की स्त्रियों के जीवन पर आधारित है। इसमें उनकी बाहरी-भीतरी दुनिया के सुख-दुःख हैं। इसमें एक पीढ़ी उन स्त्रियों की है, जो परंपरा में जकड़ी घुट रही हैं और इससे मुक्त होने की उनमें कोई छटपटाहट नहीं। दूसरी पीढ़ी उन स्त्रियों की है जो एक संधिकाल में हैं। वे परंपरा में रहते हुए उससे संघर्ष कर रही हैं और तीसरी पीढ़ी उन स्त्रियों की है, जो आधुनिकता के आकाश में उन्मुक्त उड़ानें भर रही हैं।

युवा पीढ़ी के बारे में
यह पीढ़ी अभी अपने ट्रांजिक्शन पीरियड में है। ये नया आकाश छू रही हैं। मान्यताएँ टूट रही हैं। देह के बंधन टूट रहे हैं। अब आज की युवती प्रेम टूटने पर ज्यादा रोती-बिलखती नहीं। वह ज्यादा ताकतवर हुई है। हालाँकि उनमें उच्छृंखलताएँ बढ़ी हैं, वे भ्रमित भी हैं लेकिन मुझे यकीन है ये पीढ़ी भुगतती हुई सीखेगी। इन्हें किसी तरह का उपदेश देना, मार्गदर्शन देना या नसीहत देना मुझे निरर्थक लगता है।

वे जिंदगी से हासिल तजुर्बों से सीखेंगी, एक दिन वे जान लेंगी कि उनके लिए सही नजरिया क्या है। इस पीढ़ी का प्रेम देखती हूँ तो लगता यह फटाफट क्रिकेट की तरह है, बल्कि ट्वेंटी-20 क्रिकेट की तरह है। इनका प्रेम कॉफी हाउस में पैदा होता है और वहीं दम तोड़ देता है लेकिन इस पीढ़ी ने कामयाबी की जो नई इबारतें लिखी हैं वे अभूतपूर्व हैं।

संवेदनाओं के बारे में
कृष्णाजी कहती हैं सुख की तलाश में भटकन बढ़ी है। टूटन-फूटन के साथ उलझाव भी बढ़े हैं। इसलिए संवेदनाएँ छीज रही हैं। भावनात्मक भरोसा कम हो रहा है। अबोला बढ़ा है। बुजुर्गों से नई पीढ़ी के रिश्तों में खुशबू नहीं है। दो पीढ़ियों के बीच के फासलों की बात छोड़ दें, पति-पत्नी के बीच भावनात्मक रिश्तों में दरार है। पुरुष स्त्री का न आदर करते हैं न प्रेम करते हैं, वे बस उसका शोषण करते हैं।

प्रमुख किताबे ं
नीलोफर, टपरेवाले, बित्ताभर की छोकरी, बात एक औरत की, कुमारिकाएँ (उपन्यास), टीन के घर, पारस, गलियारे, नपुंसक, दूसरी औरत (कहानी संग्रह), लगता नहीं है दिल मेरा (आत्मकथा), भीगे मन, रीते तन (रिपोर्ताज), अपना हाथ जगन्नाथ, एक था रोबी, नीली आँखों वाली गुड़िया (बच्चों के लिए कहानी संग्रह)।

सम्मान
पन्नालाल पदुमलाल बख्शी राष्ट्रीय पुरस्कार, रत्नभारती, अक्षर आदित्य. राष्ट्रभाषा हिंदी सम्मान, तूलिका सम्मान, वाग्मती सम्मान।
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