अनपेक्षित जवाब

लघुकथा

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नियति सप्र े
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हमारे एक स्नेही हैं। उनके पिताजी का देहांत हो गया। मैं शहर के बाहर थी। इसलिए वापस आने पर फोन किया। "सुनकर बहुत दुःख हुआ, पर ईश्वर की जो मर्जी। वैसे आप बता रहे थे कि वे बहुत एक्टिव थे..." आदि-आदि बातें हुईं।

फोन रखते-रखते मैंने पूछ लिया- "वे आपके पास ही रहते थे क्या?"

" नहीं मैं उनके पास रहता था।"

संस्कारित, लेकिन अनपेक्षित जवाब सुनकर मैं चुप रह गई। यांत्रिक होते जीवन में भावनाओं का सुखद प्रवेश मन को छू गया।

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