विमल बहुत परेशान था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो इस परिस्थिति से कैसे निबटे। वो अपनी मां को बहुत चाहता था किंतु उसकी पत्नी और बच्चे उसकी मां से बहुत दूर भागते थे, क्योंकि उसकी मां की एक आंख नहीं थी, साथ ही उसकी कमर भी 90 अंश पर झुकी थी। वैसे वह अपना काम सब खुद कर लेती है किंतु फिर भी वो उसकी पत्नी और बच्चों के लिए हमेशा खटकती है।
दादी, आप ऊपर के कमरे में जाओ, मेरे दोस्त आ रहे हैं, विमल के बेटे अखिल ने बड़े बेरुखी से कहा।
पर बेटा, मैं तो यहां बहुत दूर बैठी हूं, विमल की मां ने बहुत प्यार से कहा।
नहीं, आप उनके सामने मत रहो, वो मुझे चिढ़ाते हैं, अखिल ने जोर से डांटते हुए कहा।
क्या हुआ अखिल क्यों चिल्ला रहे हो, विमल की पत्नी कामनी ने किचन से ही आवाज लगाई।
देखो न मां, ये दादी यहीं ड्राइंग रूम में बैठी हैं और मेरे दोस्त आ रहे हैं, अखिल ने शिकायतभरे लहजे में कहा।
मां जी, आप ऊपर चली जाओ, क्यों हम लोगों को लजवाती हो, कामनी ने बेटे का पक्ष लेते हुए कहा।
बेचारी सरस्वती चुपचाप उठकर जीने के सहारे ऊपर जाने लगी। कमर झुकी होने के कारण उन्हें ऊपर चढ़ने में बहुत परेशानी हो रही थी किंतु वो पूरी ताकत से ऊपर के एक अकेले कोने वाले कमरे में जाकर बैठ गईं।
विमल बाजू के कमरे से सब सुन रहा था। उसे कष्ट हो रहा था कि उसकी मां को अपमानित होना पड़ रहा है किंतु वो असहाय था। अगर वो कुछ कहता है तो पत्नी और बच्चे उसका विरोध करने लगते हैं। दूसरे उनके तर्क भी सही लगते हैं। चूंकि वो एक प्रशासनिक अधिकारी था, उसका सामाजिक स्तर बहुत ऊंचा था, उसकी ससुराल भी एक उच्च घराने में थी अत: वह चुपचाप इस तरह हर दिन अपनी मां को अपमानित होते देखता रहता था।
रात को विमल की पत्नी ने कहा, देखो जी, अब कुछ करो। कल कलेक्टर साहब की पत्नी आई थीं। मां जी अपनी देशी धुन धारा में उनसे मिलीं। मुझे बहुत शर्म आ रही थी बताते हुए कि ये मेरी सास हैं। मैंने कह दिया कि दूर की रिश्तेदार हैं, इलाज कराने आई हैं।
विमल को रोना आ गया किंतु फिर भी वह चुप रहा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।
अपने बेटे की मन:स्थिति को सरस्वती अच्छी तरह से जानती थीं और बेटे को कोई कष्ट न हो इसलिए वो हर बात को चुपचाप सह लेती थीं। विमल बहुत उदास रहने लगा। एक तरफ परिवार और सामाजिक स्तर पर जीने की प्रतिबद्धता थी तो दूसरी ओर मां।
आखिर मां से अपने बेटे की यह हालत नहीं देखी गई। एक दिन उसने अपने बेटे से कहा, विमल बहुत दिन हो गए हैं, मैं अपने गांव जाना चाहती हूं। मुझे वहां पहुंचा दो, मेरा यहां मन नहीं ला रहा।
किंतु मां वहां तो कोई नहीं है, तुम्हारी देखभाल कौन करेगा? विमल ने आश्चर्य से पूछा।
अरे, सब गांव वाले तो हैं और वो तुम्हारे मामाजी तो उसी गांव में रहते हैं और फिर हम सारी व्यवस्थाएं कर आएंगे न, कामनी को तो जैसे मन की मुराद मिल गई हो।
हां बेटा, बहू सही कह रही है, सरस्वती ने लंबी सांस लेते हुए कहा।
विमल जानता था कि गांव में मां की देखभाल करने वाला कोई नहीं है लेकिन अपनी पत्नी की जिद के कारण वह अपनी मां को गांव छोड़ने पर विवश हो गया।
मां को गांव छोड़कर आते वक्त उसे रोना आ रहा था तथा अपनी बेबसी पर गुस्सा भी आ रहा था किंतु परिवार, पत्नी और समाज ने उसके इन मनोभावों को दबा दिया और वो सुकून-सा महसूस करने लगा।
कुछ दिनों के बाद उसके चाचा, जो अमेरिका में रहते थे, आने वाले थे। जब विमल बहुत छोटा था, उसके पिता जीवित थे तब वो भारत आए थे और उसके बाद वो अब भारत आने वाले थे।
पूरा परिवार और आस-पड़ोस बहुत उत्साहित था। अमेरिका से विमल के डॉ. चाचा आ रहे थे। डॉ. रमेश ने जैसे ही घर में कदम रखा, सबने मिलकर बहुत उत्साह से उनका स्वागत किया।
क्यों विमल भाभी नहीं दिख रही, कहां हैं? डॉ. रमेश ने उत्सुकतापूर्वक पूछा।
जी वो गांव में रहती हैं, यहां उनका मन नहीं लगा, कामनी ने सपाट लहजे में उत्तर दिया।
डॉ. रमेश ने विमल की ओर देखा तो विमल ने अपनी आंखें झुका लीं।
डॉ. रमेश सब समझ गए। बोले, कल हम भाभी से मिलने गांव चलेंगे सब लोग।
दूसरे दिन सभी लोग गांव के घर में पहुंचे। देखा कि सरस्वती को बहुत तेज बुखार है और वो पलंग पर असहाय पड़ी है। डॉ. रमेश दौड़कर सरस्वती के पास गए। उनके पैर छूकर रोने लगे। सरस्वती की ये हालत उनकी कल्पना से परे थी।
वाह बेटा विमल, तूने तो नाम उजागर कर दिया। अपनी मां की ये हालत देखकर तुझे तो शर्म भी नहीं आ रही होगी, डॉ. रमेश ने विमल को लगभग डांटते हुए कहा।
नहीं देवरजी, विमल का कोई दोष नहीं है, मैं खुद गांव आई थी, सरस्वती ने अपने बेटे का बचाव किया।
मुझे सब पता चल गया भाभी, आप चुप रहो।
क्यों बहु तुम्हें अपनी सास की कुरूपता पसंद नहीं है। समाज में तुम्हें नीचा देखना पड़ता है। है ना? डॉ. रमेश ने कामनी की ओर व्यंग्य से देखा।
कामनी निरुत्तर होकर विमल को देखने लगी।
आज तुम जिस सामाजिक स्तर पर हो, वो इन्हीं के संघर्षों की देन है और बेटा विमल, तुम्हें शायद मालूम न हो कि बचपन में जब तुम 1 साल के थे तब छत से नीचे गिरने के कारण तुम्हारी एक आंख फूट गई थी और तुम्हारी रीढ़ की हड्डी में भी समस्या थी। तब तुम्हारी इस कुरूप मां ने अपनी एक आंख और अपना बोन मेरो तुम्हें देकर इतना सुन्दर स्वरूप दिया था।
कामनी बेटा, इतने सालों तक संघर्ष करके बेटे को प्रशासनिक अधिकारी बनाने वाली इस संघर्षशील औरत की तुम लोगों ने यह दशा कर दी। तुम्हें ईश्वर कभी माफ नहीं करेगा, डॉ. रमेश की आंखों से अश्रु जलधारा बह रही थी।
अब भाभी, आप मेरे साथ अमेरिका जाएंगी। यहां इन स्वार्थी लोगों के बीच नहीं रहेंगी, डॉ. रमेश ने सरस्वती से कहा।
विमल को तो काटो तो खून नहीं था। डॉ. रमेश जो उसके चाचा थे, उन्होंने जो राज बताया उसके बाद तो विमल को यही लग रहा था कि उससे ज्यादा पापी इंसान इस दुनिया में कोई और है ही नहीं।
वह दौड़ता गया और मां सरस्वती के कदमों से लिपट गया। मां मेरा अपराध अक्षम्य है। मैं जान-बूझकर चुप्पी साधे रहा। आपका अपमान करवाता रहा। अब सिर्फ आप ही उस घर में मेरे साथ रहेंगी और कोई नहीं, विमल ने आग्नेय दृष्टि से अपनी पत्नी और बच्चों को देखा।
कामनी को भी बहुत पश्चाताप हो रहा था किंतु उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो सरस्वती से आंख मिलाए।
सरस्वती ने कामनी की मन:स्थिति को समझकर उसको पुचकारते हुए अपने पास बुलाया और विमल को डांटते हुए कहा, खबरदार जो मेरी बहु को मुझसे अलग करने की कोशिश की तो तुझे ही घर से बाहर निकाल दूंगी।
कामनी और बच्चों ने सरस्वती के पैर पड़ते हुए अपने व्यवहार पर माफी मांगी और मां के हृदय ने सबको माफ कर दिया।