बिगड़ते पर्यावरण पर लघु कथा : मौन पहाड़ का बदला

सुशील कुमार शर्मा
गुरुवार, 22 मई 2025 (14:14 IST)
ऊंचे-ऊंचे हिमखंडों से घिरा एक छोटा शहर था। पहाड़ों की गोद में बसे इस शहर में पर्यटन फल-फूल रहा था। लेकिन पर्यटकों और स्थानीय लोगों की बढ़ती संख्या के कारण, पहाड़ पर कचरा और प्रदूषण बढ़ने लगा। होटल और रिसॉर्ट्स के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई, जिससे मिट्टी का कटाव बढ़ गया। पर्यावरणीय नियमों को लगातार अनदेखा किया जा रहा था।
 
शहर के लोग अक्सर मौन पहाड़ की प्रशंसा करते थे, लेकिन उसके दर्द को कभी नहीं समझते थे। एक दिन, लगातार बारिश हुई, और पहाड़, जो अब कमजोर हो चुका था, काँप उठा। एक विशाल भूस्खलन हुआ, जिसने पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया। मकान ढह गए, सड़कें टूट गईं, और कई जानें चली गईं।
 
जो लोग बच गए, उन्होंने देखा कि यह आपदा मानव निर्मित थी। उन्होंने पहाड़ की चेतावनी को नजरअंदाज किया था। मलबे के बीच से, एक बुजुर्ग साधु निकले, जिन्होंने हमेशा प्रकृति के संरक्षण की वकालत की थी। 
 
उन्होंने कहा, 'पहाड़ मौन रहता है, पर उसका धैर्य असीमित नहीं। जब उसका धैर्य टूटता है, तो वह अपने क्रोध का प्रदर्शन करता है।'
 
यह आपदा उनके लिए एक कड़वा सबक थी। शहर के लोगों ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया कि वे अब प्रकृति का सम्मान करेंगे। उन्होंने पुनर्निर्माण के साथ-साथ वृक्षारोपण अभियान शुरू किया, कचरा प्रबंधन पर ध्यान दिया और स्थायी पर्यटन को बढ़ावा दिया। उन्होंने जाना कि पहाड़ का बदला वास्तव में उनकी अपनी अनदेखी का परिणाम था।
 
(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)ALSO READ: पर्यावरणीय नैतिकता और आपदा पर आधारित लघु कथा : अंतिम बीज

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