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Motivational Story | ज्ञान कहीं ज्ञान ही न रह जाए

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अनिरुद्ध जोशी

, बुधवार, 5 फ़रवरी 2020 (11:04 IST)
यह एक प्राचीन लोककथा है। ओशो रजनीश ने अपने प्रवचनों में इसे सुनाया था। यह कहानी कई लोगों के अलग अलग तरीके से सुनाई है। यह बहुत ही प्रेरणा देने वाली कहानी है। यदि आप इसे समझ जाते हैं तो यह ज्ञान ही नहीं बहुत अन्य जगहों के लिए भी उपयोगी है। इस कहानी को पिता पुत्र के संदर्भ में ही देखा जाता है।
 
 
एक गुरु के तीन प्रमुख शिष्य थे। तीनों में से किसी एक योग्य शिष्य को वह जिम्मेदारी सौंपना चाहता था। तीनों की बुद्धिमत्ता को परखने के लिए उसने कहा- सुनो! कुछ माह के लिए मैं तीर्थ जा रहा हूं। यह कुछ थोड़े से बीज हैं जिनकी तीन थैलियां हैं। एक-एक थैली तुम तीनों ले लो और इन्हें संभालकर रखना। मैं जब लौटूं तो यह बीज मुझे वापस चाहिए।
 
 
गुरु के जाने के बाद पहले शिष्य ने बहुत सोचने के बाद बीजों को सुरक्षित जगह रख दिया जहां से वह रोज बीजों की थैली निकालता और उन्हें साफ करके पुन: रख देता। दूसरे शिष्य ने सोचा इस तरह तो बीज खराब हो जाएंगे। उसने सोचा मैं इन्हें बाजार में बेच आऊं और जब गुरुजी आएंगे तो पुन: खरीदकर उन्हें दे दूंगा।
 
 
कुछ माह बाद गुरु लौटा और उसने अपने शिष्यों को बुलाया। पहले ने सुरक्षित रखे बीजों की थैली निकालकर रख दी जिसमें सारे बीज सड़ चुके थे। दूसरा बाजार गया और उतने ही बीज खरीदकर ले आया। तीसरे शिष्य से गुरु ने पूछा- तुमने क्या किया बीजों का? वह शिष्य अपने गुरु को आंगन में ले गया और कहा- देखिए आपने जो बीज दिए थे वह अब असंख्य फूल बन चुके हैं। गुरु उन ढेर सारे फूलों को देखकर खुश हो गया। उसने उस तीसरे शिष्य को अपना उत्तराधिकारी बना दिया।

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि आपके पास जो है उसे बांटने, बढ़ाने से ही वह जीवित रहता है। इसी तरह प्रत्येक व्यक्ति को भी होना चाहिए। बीज की तरह। ‍जीवन में वही सफल होता है जो संघर्ष में तपता है, फूटना है और अंत में टूटकर फूल बन जाता है। हमारे पास जो जो उसे संभालकर रखने की बजाया यह सोचा जाना चाहिए कि वह कैसे तीन या चार गुना हो।
 

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