' माँ तो मेरे पास नहीं ह ै, पापा हैं पर वो भी....भाई-बहन भी नहीं हैं ।' कहते-कहते लड़का फिर चुप हो गया। लड़के की आँखें अचानक नम हो गई थीं। सोनू को लग ा, उसकी पलकों के किनारे झिलमिला भी रहे हैं। उसने लड़के को सहज करने के लिए कहा- 'और सबसे खास प्रेम हमें किसी एक खास से भी होता है ।'
खिड़की के बाहर गर्मी की रात बिखरी हुई ह ै, गर्मी की गुनगुनी-सी रात। खिड़की से सटकर लगी हुई रातरानी की झाड़ी के फूलों की मादक गं ध, खिड़की के परदे से अठखेलियाँ कर रही हवा के साथ कमरे में आ रही है। खिड़की के छज्जे पर लदी हुई रंगून क्रीपर कीलता भी लाल सफेद और गुलाबी फूलों के गुच्छों के कारण झुकी-झुकी जा रही है ।
खिड़की के पार दूर आसमान में आधा-अधूरा चाँद टँका हुआ है। ग्रीष्म की धूप को दिन भर सहन करने के बाद झुलसे पेड़ों की पत्तियों और शाखाओं को रात की ठंडी हवा सहला रही है। हवा का स्पर्श पाकर पत्तियाँ कृतज्ञतावश झुकी-झुकी जा रही हैं। गर्मी के मौसम की सबसे बड़ी विशेषता उसकी रात होती है। जितना तपता हु आ, जलता हुआ दि न, उतनी ही सुहानी रात।
लड़के की माँ नहीं है, केवल पिता ही हैं, जिनको कारोबार के सिलसिले में घर से बाहर रहना पड़ता है। इससे ज्यादा न सोनू को पता है, न ही उसको पूछने की इजाजत है। उसे बस ये पता है कि यहाँ से उसे अच्छा पैसा मिलेगा, जो कॉलेज की परीक्षा-फीस भरने में काम आ जाएगा।
खिड़की से हट कर सोनू अंदर आ गया और अपनी कविता की डायरी ले कर कुर्सी पर बैठ गया। लड़का अभी भी उसी प्रकार सो रहा है। सोनू गौर से उस लड़के के चेहरे को देखने लगा। चौदह-पंद्रह वर्ष की मासूमियत से भरा हुआ चेहर ा, जिस पर जवानी ने होठों के ऊपर कल्ले की तरह फूट रहे मूँछों के बारीक-बारीक रोम के रूप मे ं, अभी दस्तक देना प्रारंभ ही किया है ।
गुलाबी हों ठ, जिनको बीमारी ने भले ही सुखा दिया ह ै, मगर अभी भी उनमें ताजगी है। बीमारी के बाद भी चेहरे पर किशोरावस्था की चमक और स्निग्धता बिखरी है।
सोनू को यहाँ लड़के की देखभाल के लिए रखा गया है। वैसे वो एक निजी अस्पताल का कर्मचारी ह ै, जिसके मालिक लड़के के पिता के करीबी दोस्त हैं। उनके ही कारण सोनू को यहाँ भेजा गया है। लड़के को दवा देन ा, उसे पलंग से उठाकर टहलान ा, खाना खिलाना सबकी व्यवस्था सोनू को करना होती है ।
लड़के की माँ नहीं ह ै, केवल पिता ही है ं, जिनको कारोबार के सिलसिले में घर से बाहर रहना पड़ता है। इससे ज्यादा न सोनू को पता ह ै, न ही उसको पूछने की इजाजत है। उसे बस ये पता है कि यहाँ से उसे अच्छा पैसा मिलेग ा, जो कॉलेज की परीक्षा-फीस भरने में काम आ जाएगा। यहाँ पर जब तक है तब तक कविता लिखने का भी समय है उसके पास ।
अस्पताल की नौकरी वो केवल अपनी कॉलेज की पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए ही कर रहा ह ै, मगर अस्पताल में काम करते समय कवित ा? सोचा ही नहीं जासकता।
' सोनू भैय ा', लड़के की आवाज सुनकर सोनू की तंद्रा टूटी।
' हाँ बोल ो', सोनू ने कुर्सी से उठ कर पलंग की तरफ जाते हुए कहा।
' पानी चाहिए सोनू भैय ा' लड़के ने उत्तर दिया।
' देता हू ँ, तुम लेटे रहो ।' फिर घड़ी देखते हुए कह ा, ' दवा लेने का टाइम भी तो हो गया है ।' कहते हुए सोनू दवा निकालने लगा।
' चलो उठ कर बैठ जा ओ, दवा लेना है ।' सोनू के कहते ही लड़का धीरे-धीरे उठा और तकिए से टिक कर बैठ गया। दवा देने के बाद जब सोनू वापस कुर्सी पर बैठने जाने लगा तो लड़के ने कहा- 'सोनू भैय ा, यहीं बैठ जाओ न पलंग पर। आपसे बातें करूँगा। अब नींद तो आएगी नहीं ।' लड़के के अनुरोध पर सोनू वहीं बैठ गया। पलंग के पास रखी टेबल से कंघी उठा कर लड़के के बाल ठीक करने लगा। गर्मी की मस्त हवा के कारण लड़के के बाल बिखर-बिखर जा रहे थे। शाम को नहाते समय लड़के ने जिद करके शैंपू लगाया था और देर तक नहाता रहा था।
' सोनू भैय ा', लड़के के सर पर गिर रही एक लट को जब वो पीछे कर रहा थ ा, तब लड़के ने कहा। 'हूँ....' कंघी को टेबल पर रखते हुए सोनू ने। कुछ देर तक लड़का चुप रह ा, फिर बोला 'ये प्रेम क्या होता है....?' लड़के के प्रश्न से सोनू कुछ चौंका। फिर मुस्कराता हुआ बोला 'प्रेम....? अभी तीन-चार साल रुक जा ओ, सब पता चल जाएगा ।' कहते हुए उसने लड़के के बालों को हल्के से बिखेर दिया।
' तीन-चार साल रुक पाऊँगा....?' लड़के ने उदासी से पूछा। लड़के के पूछते ही कमरे की हवा रुक गई।
' क्या होता है प्रेम सोनू भैया....?' सोनू को चुप देख लड़के ने फिर पूछा।
' प्रेम वो होता ह ै, जो हमें किसी दूसरे से जोड़ता है ।' सोनू ने कुछ टालने वाले अंदाज में कहा।
' किसस े?' लड़के ने फिर पूछा।
' किसी से भी। उन सबस े, जो हमें अच्छे लगते है ं, हमारे माँ-बा प, हमारे भाई-बह न, हमारे दोस्त ।' सोनू ने जवाब दिया।
' माँ तो मेरे पास नहीं ह ै, पापा हैं पर वो भी....भाई-बहन भी नहीं हैं ।' कहते-कहते लड़का फिर चुप हो गया। लड़के की आँखें अचानक नम हो गई थीं ।
सोनू को लग ा, उसकी पलकों के किनारे झिलमिला भी रहे हैं। उसने लड़के को सहज करने के लिए कहा- 'और सबसे खास प्रेम हमें किसी एक खास से भी होता है ।' सोनू के इतना कहते ही लड़के के चेहरे के भाव अचानक बदल ग ए, मानो सोनू ने उसके मन की बात कह दी हो।
' कौन खास सोनू भैया....?' उसने उत्सुकता से पूछा।
' ये जो बाहर चाँद नजर आ रहा ह ै, न आधा अधूरा-सा चाँ द, इसको देखकर न तो रात की रानी के फूल झूम रहे है ं, न पेड़ों की पत्तियाँ इठला रही है ं, क्योंकि ये सब एक खास चाँद से प्रेम करते हैं। पूर्णमासी के पूरे चाँद से। अभी दो दिन बाद जब ये चाँद पूरा हो जाएग ा, तब ये सब उस खास के प्रेम में पागल हो जाएँगे ।' सोनू ने उत्तर दिया।
' सचमुच....?' लड़के ने उत्सकुता से फिर पूछा।
' हाँ बिलकु ल' सोनू ने कहा ।
' दिखाओगे मुझ े?' लड़के ने पूछा।
' हाँ बिलकुल दिखाऊँगा ।' सोनू ने उत्तर दिया।
लड़का गौर से खिड़की के पार के चाँद को देखने लगा। उसके चेहरे के भाव पल-पल बदल रहे थे। कुछ देर तक देखते रहने के बाद लड़का फिर उदास हो गया।
' तुम्हें मिला कोई खास....?' सोनू ने लड़के का मूड बदलने के लिए पूछा।
लड़के ने सोनू की तरफ देखा। सोनू ने देख ा, उन दो नन्ही आँखों में सितारे झिलमिला रहे थे। फिर अचानक वो शरमा गया और चादर के धागे खींचने लगा।
' हूँ....मतलब मिली है ।' सोनू ने मजाक के अंदाज में पूछा।
' है नही ं, थी.... ।' लड़के ने उसी तरह झुके हुए कह ा, पर उसकी आवाज डूबी हुई थी।
' क ब?' सोनू ने पूछा।
' जब मैं स्कूल जाता था....' लड़के के स्वर में उदासी थी। उसकी आवाज ऐसी थ ी, मानो किसी सुनसान रात में पहाड़ पर लगे पेड़ों पर बर्फ गिर रही हो।
' कौन थी....?' सोनू ने फिर पूछा।
' मेरे साथ ही पढ़ती थी और मेरे साथ वही होता थ ा, जो अभी आपने कहा ना कि पूर्णमासी के चाँद को देखकर पेड़ों को हो जाता है ।' लड़के ने धीरे से कहा।
' हूँ....खूब बात-वात होती होंगी तब तो उसस े?' सोनू ने शरारत के लहजे में पूछा।
' नही ं, बात तो एक बार भी नहीं हुई ।' लड़के ने सर उठा कर उत्तर दिया।
' अरे....! क्यों....?' सोनू ने पूछा।
' हिम्मत नहीं होती थी और वो भी शायद बात करना नहीं चाहती थी ।' लड़के की आँखें बुझ गई थीं।
' चलो अब जब स्कूल जाना शुरू करो तो सबसे पहले उससे जाकर बात करना और नहीं कर पाओ तो मुझे ले चलन ा, मैं तुम्हारी तरफ से बात कर लूँगा ।' सोनू ने लड़के के सर पर हाथ रखते हुए कहा।
' क्यों मजाक करते हो सोनू भैय ा, अब कहाँ जा पाऊँगा मैं स्कूल ? अब तो शायद मम्मी के पास ही चला जाऊँगा ।' कहते हुए लड़के ने सर पर रखा सोनू का हाथ लेकर गोद में रख लिया और दोनों हाथों में दबा लिया। सोनू ने दूसरे हाथ से लड़के को कंधे से खींचा औरअपनी गोद में उसका सर रख कर लिटा लिया।
' नहीं बेट ा, ऐसा नहीं कहते। मैं हूँ ना। मैं तुमको बिलकुल ठीक कर दूँगा ।' सोनू ने लड़के की आँखों में आई नमी को अपनी उँगलियों में समेटते हुए कहा। लड़के ने कोई उत्तर नहीं दिय ा, उसी तरह लेटा रहा। सोनू उसके बालों को सहलाता रहा। कुछ देर बात जब उसको लगा कि लड़का सो गया ह ै, तो उसने आहिस्ता से लड़के का सर अपनी गोद से उठा कर तकिए पर रख ा, उसे चादर ओढ़ाई और आकर अपने पलंग पर लेट गया।
अगले दिन से लड़के की तबीयत बिगड़ने लग गई थी। तेज बुखार में बड़बड़ाता रहता था। सोनू ने सुना कि उसकी बड़बड़ाहट में बार-बार मम्मी शब्द आ रहा है। नर्सिंग होम से कई बार डॉक्टर आक र, लड़के को देखक र, जा चुके थे।
बुखार के तीसरे दिन जब डॉक्टर सिन्हा लड़के को देखकर वापस जा रहे थ े, तब सोनू ने पूछा थ ा, ' कोई डरने की बात तो नहीं है न सर ।'
' डरने की बात तो ह ै, अब इसे अस्पताल में शिफ्ट करना ही पड़ेगा। ये रिकवर हो ही नहीं पा रहा है। इसके पिता कब तक आ जाएँग े?' डॉक्टर सिन्हा ने कहा था।
' बस शायद परसों तक आ जाएँग े, सर्वेंट बता रहा था कि उनका फोन आया थ ा' सोनू ने उत्तर दिया।
' ठीक ह ै, उनके आते ही इसे शिफ्ट कर देंगे। तब तक ध्यान रखन ा, कुछ भी हो तो तुरंत खबर करन ा' कहते हुए डॉक्टर सिन्हा चले गए। सोनू आकर लड़के के सिरहाने बैठ गया और धीरे-धीरे उसका सर दबाने लगा। कुछ देर बाद लड़का कसमसाया और उसने आँखें खोल दीं। सोनू को देखा तो मुस्करा दिया।
' उठ ग ए, चलो अच्छा किय ा, शाम भी हो गई है ।' सोनू ने कहा।
लड़का कुछ देर तक सोनू को देखता रह ा, फिर बोला 'सोनू भैया क्या अब मैं उसको कभी नहीं देख पाऊँग ा?'
' क्यों नहीं देख पाओग े? मुझे उसका पत ा, टेलीफोन नंबर दो। अभी बुला लेता हूँ ।' सोनू ने उत्तर दिया।
' वो तो मुझे कुछ भी नहीं पता ।' लड़के ने उदासी के साथ कहा।
' चल ो, मैं कल स्कूल जाकर पता कर लूँगा और उसको बुला लाऊँग ा' सोनू ने लड़के का उत्साह बढ़ाने के लिए कहा। लड़का फिर चुप हो गया। खिड़की के बाहर देखता रह ा, फिर अचानक बोला 'सोनू भैया आज पूर्णिमा है न ा? आज आपने कुछ दिखाने का कहा था ।'
' हाँ भाई दिखा दूँगा। रात तो होने दो ।' सोनू ने उत्तर दिया।
' सोनू भैय ा, मैं अपनी मम्मी को भी देखना चाहता थ ा, पर नहीं देख पाया। ये सब मेरे साथ ही....' कहते-कहते लड़का चुप हो गया।
' चलो आज दिखा दूँग ा, जब चाँद पूरा होगा न ा, तब उसमें तुमको अपनी मम्मी भी दिखेंगी और वो भी। वो सब दिखेंग े, जिनको तुम प्रेम करते हो ।' सोनू ने कहा।
' सच....?' लड़के ने उत्साह में भरकर पूछा।
' बिलकुल सच ।' सोनू दे उत्तर दिया।
' पर मैं उनको छू तो नहीं पाऊँगा न....?' लड़का फिर उदास हो गया।
' क्यों नहीं छू पाओग े? जब चाँद को देख ो, तो मेरी इस हथेली को छू लेना। तुमको ऐसा लगेगा कि तुम उन सबको छू रहे ह ो, जिनको तुम प्रेम करते हो ।' सोनू ने अपनी हथेली दिखाते हुए कहा।
' ठीक है ।' लड़का फिर उत्साह से भर गया।
' पर देख ो, जब चाँद में तुम्हारी वो खास नजर आए तो उसे देखकर शरमा मत जाना ।' सोनू ने लड़के की कमर में गुदगुदी करते हुए कहा। लड़का खिलखिला उठा।
रात को लड़का सोने के साथ खिड़की पर आ गया। लड़के को सोनू ने गोद में उठाकर खिड़की पर बैठा दिया थ ा, क्योंकि अब उसके चलने-फिरने की ताकत बिलकुल क्षीण हो गई थी।
' देख ो, वो पूरा पीला चाँद ।' अमलतास के दो पेड़ों के ऊपर दिख रहे चाँद की ओर इशारा करते हुए सोनू ने कहा। लड़के ने सर उठा कर चाँद को देखा।
' देख ो, उसमें अपनी मम्मी को। दिख रही हैं न ा?' सोनू ने पूछा। लड़के ने हाँ में सिर हिलाया।
' ठीक ह ै, अब आँखें बंद करके मेरी इस हथेली को छुओ ।' सोनू के कहते ही लड़के ने वैसा ही किया। थोड़ी देर बाद लड़के ने हथेली को खींच कर अपने चेहरे से सटा लिया। कुछ ही देर में सोनू की हथेली भींग गई।
सोनू ने लड़के की आँखें पोंछी और फिर कहा- 'चल ो, अब फिर देखो चाँद क ो, अब वो दिखेगी ।' लड़के ने फिर चाँद को देखा। 'दिख ी?' सोनू ने पूछे। लड़के ने फिर हाँ में सर हिलाया और आँखें बंद कर लीं और सोनू की हथेली को फिर चेहरे से लगा लिया।अब की बार सोनू को हथेली पर नमी की जगह आँच का एहसास हुआ। लड़के की गर्म साँसों की आँच का एहसास। आँच धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। बढ़ते-बढ़ते अचानक एकदम ठंडी हो गई और हथेली पर साँसों के टकराने का एहसास भी बंद हो गया। सोनू ने देख ा, दूर आसमान पर एक सितारा टूटा और रोशनी की लकीर छोड़ता हु आ, चाँद की तरफ बढ़ा। चाँद के ठीक पास आकर वो सितारा बुझ गय ा, मानो चाँद को छूकर खामोश हो गया हो। सोनू ने आहिस्ता से लड़के का चेहरा हथेली पर से हटाया। लड़का उसकी बाँहों में झूल गया। हवा बिलकुल ठहर गई थ ी, मगर रातरानी के छोटे-छोटे फू ल, चुपचाप आँसुओं की तरह टप-टप करके जमीन पर गिर रहे थे।