स्टेशन पर गाड़ी रुकी। अपने बारह वर्षीय पुत्र अर्जुन के साथ सफर कर रही शांता ने कुली को पुकारा तो अर्जुन ने बड़े उत्साहपूर्वक कहा, 'माँ, उठा लूँगा बक्सा।'
उसके उत्साह पर ब्रेक लगाते हुए शांता ने उसे डाँटा, 'अरे इतना भारी बक्सा उठाएगा तो तेरे पेट की आँतड़ियाँ बाहर आ जाएँगी।'
कुली आया, उसने बक्सा उठाया और स्टेशन के बाहर रख मजदूरी ले चला गया। अर्जुन उसे जाते हुए देखता रहा। उसके भीतर पनपी जिज्ञासा ने माँ से सवाल किया, 'माँ तुमने तो कहा था कि इतना भारी बक्सा उठाने से पेट की आँतड़ियाँ बाहर आ जाती हैं, लेकिन इस कुली के साथ तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।'
पुत्र के इस जटिल सवाल ने उसे उलझन में डाल दिया। कुछ देर सोचने के बाद उसने उत्तर दिया, ' बेटा कुली की आँतड़ियाँ भी जरूर बाहर आई होंगी लेकिन मजदूरी मिलने की उमंग में उसे पता ही नहीं चला होगा कि कब पेट में वापिस चली गईं। अर्जुन कुछ समझ नहीं पाया और गुमसुम माँ के चेहरे को ताकता रहा।