सच्चे शुभचिंतक

लघुकथा

Webdunia
माधव नागदा
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वे अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ हेतु भर्ती हैं। खास आदमी हैं इसलिए कमरे की खास व्यवस्था तो है ही।
बाहर मिलने वालों का तांता लगा हुआ है। गेटकीपर बमुश्किल उन्हें रोके रहता है। मिन्नत भरे स्वर में कहता है,' साहब को आराम की जरूरत है। डॉक्टर की सख्त मनाही है। आप अभ‍ी उनसे नहीं मिल सकते।'

परन्तु लोग अड़े रहते हैं,' हम तो मिले बिना नहीं जाएँगे।'

खिड़की से यह नजारा देख समीप बैठा उनका घनिष्ठ मित्र कहता है,' कितने चाहने वाले हैं तुम्हारे। देख कर ईर्ष्या जगती है।'

वे मुस्कराए। फिर कंपाउंडर को समीप बुलाकर उसके कान में कोई मंत्र फूंका। कंपाउंडर एक हाथ में सिरिंज तथा दूसरे हाथ में खाली बोतल लेकर दरवाजे पर खड़ा हो गया।

' साहब को पाँच बोतल खून की जरूरत है। बारी-बारी से सामने वाली लेब में आ जाइए। ज्यादा नहीं, थोड़ा-थोड़ा ही निकालूँगा। फिर इत्मीनान से मिलकर जाना।' कंपाउंडर ने घोषणा की।

अगले ही पल दरवाजे की ओर लोगों की पीठ थी। वे एक-एक कर खिसकने लगे। कंपाउंडर ने आकर सूचना दी कि केवल दो लोग ऐसे हैं जो अब भी नहीं गए हैं।

' देखो मित्र, ये दो हैं मेरे सच्चे शुभचिंतक।' साहब ने कहा और कंपाउंडर को आदेश दिया 'उन्हें अंदर आने दो।'

साभार : सम्बोधन

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