' जानते ह ो, कल तुम्हारा हॉर्न सुनकर माँ ने क्या कह ा?' ' क्य ा?' ' कहने लग ी, डेढ़ बज गया ।' मैंने पूछा कैस े? तो बोल ी, ये पिछवाड़े में जो धोबी आते हैं न ा, रोज एक-डेढ़ के लगभग आते हैं और रोज ये गाड़ी वाला इसी तरह हॉर्न बजाता है ।' रामनाथ जोर से हँस पड़ ा, कहने लग ा, ' माँ से कहना एक दिन हॉर्न के बजाए बैंड बजाता आ धमकूँगा ।'
उन दिनों मालती जवान थी। और चार बंगले के पिछवाड़े की खाड़ी एक बार दिन में भरती थी और एक बार रात में। दिन में जब ये खाड़ी हाई टाइड के पानी से भर जाती तो सुपर टेक्सटाइल्स की एक वैन बहुत-से धोबी और कपड़ों की गठरियाँ लाकर किनारे पर छोड़ जाती। दड़बे से खुली मुर्गियों की तरह धोबी साहिल पर बिखर जाते और ड्राइवर रामनाथ तीन बार कार का हार्न बजाता-एक खास अंदाज में।
कहते हैं भगवान कृष्ण की मुरली की आवाज सुनकर राधा उन तक पहुँचने के लिए पागल हो उठती थी। लेकिन वो उन दिनों की बात है, जब भगवान कृष्ण के पास कार नहीं थी। वरना वो भी बाँसुरी की लंबी साधना से बच जाते और राधा को 'जमना तट' से दूर ले जाते।
' पीं पीं पिपीं! पीं पीं पिपीं! पीं पीं पिपीं!'
कहते हैं भगवान कृष्ण की मुरली की आवाज सुनकर राधा उन तक पहुँचने के लिए पागल हो उठती थी। लेकिन वो उन दिनों की बात ह ै, जब भगवान कृष्ण के पास कार नहीं थी। वरना वो भी बाँसुरी की लंबी साधना से बच जाते।
' पीं पीं पिपीं! पीं पीं पिपीं! पीं पीं पिपीं!' मालती माँ से कहत ी, ' मा ँ, मैं शीला के पास जाऊ ँ?' ' ये क्या पागलपन ह ै? जहाँ दोपहर हुई और तू भागी शीला के पा स?' ' माँ-आं-आ ँ' ' अच्छा मेरा सर मत खा ।' और राधा मुरली की तान में लिपट ी, बल खाती अपने मुरलीधर के पास पहुँच जाती। रामनाथ कार भगाता और उसे 'जमना त ट' से दूर एक सुनसान सड़क पर ले जाता। मुर्गियाँ पल भर को गरदन उठाकर देखती ं, कुड़-कुड़ करतीं और फिर किनारे पर बिखर जातीं। मालती रामनाथ की गोद में सर रख े, कार में पड़ी रहती।
' जानते ह ो, कल तुम्हारा हॉर्न सुनकर माँ ने क्या कह ा?' ' क्य ा?' ' कहने लग ी, डेढ़ बज गया ।' मैंने पूछा कैस े? तो बोल ी, ये पिछवाड़े में जो धोबी आते हैं न ा, रोज एक-डेढ़ के लगभग आते हैं और रोज ये गाड़ी वाला इसी तरह हॉर्न बजाता है ।' रामनाथ जोर से हँस पड़ ा, कहने लग ा, ' माँ से कहना एक दिन हॉर्न के बजाए बैंड बजाता आ धमकूँगा ।'
रोज की तरह रामनाथ दो-तीन घंटे बाद मालती को वापस ले आया। मुर्गियों ने गरदन उठाके देख ा, कुड़-कुड़ किया और काम में लग गईं।
मालती घर पर आ ई, चूल्हा-चौका किय ा, बापू खाना खा चुका तो हुक्का गर्म करा दिया। माँ बापू के पाँव दबाने जा बैठी और मालती बिस्तर पर लेट ी, फिर समंदर के बढ़ने का इंतजार करने लगी। रात में जब हाई टाइड आती तो खाड़ी फिर भर जाती। समंदर की लहरों का शोर धीरे-धीरे नजदीक आने लगता। लहरें उसके ऊपर से फलाँगने लगतीं।
चारपाई पानी में तैरने लगती- तैरते-तैरते कई समंदर पार कर जाती और कई अनजाने जजीरों को छू आती। आँख खुलती तो वही चूल्हा-चौक ा, बाप ू, हुक्क ा, और माँ! वो बेम न, बेमकसद अपने काम मेंलगी रहती और फिर से हाई टाइड का इंतजार करने लगती। ' पीं पीं पिपीं! पीं पीं पिपीं! पीं पीं पिपीं!' ' माँ! मैं शीला के पास जाऊ ँ?' ' क्या पागलपन ह ै?' ' माँ-आं-आँ- ।' ' अच्छा ज ा'
राधा भागते-भागते फिर मुरली मनोहर की गोद में जा गिरती। एक दिन इसी तरह मालती रामनाथ के पास पहुँची त ो, पीछे से एक चीखती आवाज ने उसके कान छेद दिए।
' मालती- ई'
मालती भँवरे की तरह चकराकर रामनाथ से अलग हो गई। सामने माँ खड़ी थी- चोटी से पकड़ घसीटती हुई घर ले गई। रामनाथ बुत बन ा, बैठा का बैठा रह गया।
उस रात मालती जब बिस्तर पर जाकर लेटी तो बहुत रोई। मा ँ, बापू के घुटने से लग ी, देर तक खुसर-फुसर करती रही। मालती ने सिर्फ एक जुमला सुना : 'बेटी जवान हो गई ह ै, कोई अच्छा घर देखके इसके हाथ पीले कर दो!'
हर माँ यही कहती है। हर बाप यही कहता है और ये एक जुमला बार-बार उसके कानों में गूँजता रहा। वो तकिए में मुँह दि ए, रातभर सिसकती रही। उसी रात चार बंगले में एक हादसा हुआ। रात के अँधेरे में एक चोर चार बंगले के पीछे की दीवार फाँदकर मुहल्ले में घुस रहा था कि चौकीदार ने देख लिया। लोगों ने पकड़ ा, खूब पीट ा, और जब मार-मार के थक गए तो पुलिस के हवाले कर आए। दो दिन बाद वो शख्स पुलिस स्टेशन में ही मर गया और पुलिस ने सारे मामले पर परदा डाल दिया। जो लोग पुलिस स्टेशन गए थ े, उनका कहना है कि वो रामनाथ ड्राइवर ही थ ा, जो मालती से मिलने आया था।
बहते पानी में बहुत ताकत है। बहता पानी किनारों की रूपरेखाएँ बदल देता है। दरियाओं के रास्ते बदल जाते है ं, समंदर के जजीरे नई-नई शक्लें इख्तयार कर लेते हैं। चार बंगले की खाड़ी भी अब पीछे की दीवार से बहुत दूर हट गई है। चार बंगले के बहुत-से रहने वाले बदलगए हैं। आस-पड़ोस बदल गया है। लेकिन मालती अब भी उसी मुहल्ले में रहती ह ै, अपने तीन बच्चों के साथ। बड़ी लड़की लत ा, छोटी लैला और छोटा लड़का राजू। उसकी कनपट्टियों पर अभी से सफेद बाल आने लगे हैं।
सुपर टेक्सटाइल मिल्स मुद्दत हुई बंद हो चुकी ह ै, लेकिन अब भी जब पिछवाड़े की खाड़ी पानी से भर जाती ह ै, तो किसी टेक्सटाइल मिल का ट्रक वहाँ आकर खड़ा हो जाता ह ै, चुपचाप उदास जैसे उसकी उम्र भी ढल गई हो और धोबी एक-एक गठरी लिए सारे साहिल पर बिखर जाते हैं।
मालती का बापू अब इस दुनिया में नहीं और माँ भी अपने गिने-चुने दिन पूरे कर रही है। मालती का पति बिशनदास घर में बैठ ा, होंठों के कोनों में बीड़ी दबा ए, कपड़ों पर जरी का काम करता रहता। बिशनदास काम करते-करते थक जाता है तो बड़े प्यार से आवाज देता ह ै,
' लता बेटे!'
' निगोड़ी दिनभर सोती रहती है। जैसे स्कूल में हल जोतने पड़ते हों ।' मालती की जबान अपनी माँ की-सी हो गई है। ' अरे तो गुस्सा क्यों होती ह ो? बच्चे हमेशा रोते-सोते ही बढ़ते हैं! लता बेटे!' ' आई बाबा!' ' बेटा जरा एक कप चाय तो बना दे!'
लता आँखें मलती रसोई में चली जाती और चाय बना लाती। लता बहुत समझदार लड़की है। बिशनदास और मालती दोनों को बहुत फक्र है उस पर। हा ँ, चार बंगले वालों ने एक बार जरूर अफवाह उड़ाई थ ी, कि वो स्कूल से आते-जाते नुक्कड़ वाले बनिए के लड़के से मिला करती है। लेकिन मालती ने मुहल्ले वालों को ऐसी खरी-खरीसुनाई थी कि फिर किसी ने चूँ नहीं की। मालती को पूरा भरोसा था कि उसकी बेटी किसी पराए लड़के की तरफ देख नहीं सकत ी, मिलना तो दूर की बात रही-
' पीं पीं पिपीं! पीं पीं पिपीं! पीं पीं पिपीं!'
अचानक खाना परोसते-परोसते मालती के हाथ रुक गए। पल में जैसे एक जमाना उसकी आँखों के सामने घूम गया। साँसें रुक गई ं, आँखें फटी रह गईं।
' क्या हु आ?' बिशनदास की आवाज जैसे खला में गूँज गई। मालती कुछ देर उसी तरह बाहर देखती रही। हॉर्न फिर बजा। ' पीं पीं पिपीं! पीं पीं पिपीं! पीं पीं पिपीं!' मालती मुड़ी। दौड़ के अंदर कमरे में गई और देखा- लता मीठी नींद चारपाई पर सो रही थी।
मालती की साँस वापस आ गई। ' क्या हु आ?' बिशनदास ने पूछा। ' कुछ नहीं ।' वो खाना परोसते हुए बोली। ' कुछ नहीं। यूँ ही सोच रही थी कि बेटी जवान हो गई है। कोई अच्छा घर देखकर इसके हाथ पीले कर दो ।'