तीस दिनी धनुर्मास महोत्सव

क्यों मनाया जाता है धनुर्मास उत्सव

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धनुर्मास उत्सव मनाने के पीछे जो कथा प्रचलित है वो इस प्रकार है :-

तमिलनाडु के बिल्लीपुर गाँव में विष्णुचित्तजी रहते थे इन्हीं के उद्यान की तुलसी की क्यारी में गोदाम्माजी का प्राकट्य हुआ। उस समय श्रवण मास, शुक्ल पक्ष पूर्वी फाल्गुनी नक्षत्र तथा कर्क की संक्रांति थी।

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गोदाम्माजी के जन्म के समय आकाशवाणी हुई थी कि हे विष्णुचित्तजी ये वही भूमि देवी है जिनका विष्णु भगवान ने वराह अवतार लेकर उद्घार किया था तब भूमि देवी द्वारा भगवान से पूछने पर कि आप दास की किस सेवा से प्रसन्न होते है, भगवान बोले जो मुझे पुष्पमाला अर्पण कर मेरा स्तोत्र पाठ करते हैं उन पर मैं विशेष प्रसन्न होता हूँ।

इसी सेवा भाव को मन में धार भूमि देवी ने भूतल अवतार लिया और भगवान की पुष्पमाला की सेवा की तथा 'तिरूप्पावै' नामक सुंदर प्रबंध पाठ भी रचा। गोदाम्माजी ने अपने पिताजी से 108 अर्चावतारों भगवानों का महत्व सुन रंगनाथ भगवान को अपने हृदय में विराजमान कर भगवत्ताप्राप्ति अर्थात रंगनाथ प्रभु के लिए धन संक्रांति से मकर संक्रांति तक तीस दिनों के व्रत का अनुष्ठान किया था।

गोदाम्माजी द्वारा किए गए यही तीस दिन के व्रत विधान को हर वर्ष धनुर्मास उत्सव के रूप में मनाते हैं। इस व्रत का अनुष्ठान करते हुए 27वें दिन गोदाम्माजी को रंगनाथ भगवान की प्राप्ति हुई थी। इसी 27वें दिन को गोदा रंगनाथ कल्याण उत्सव के रूप में हर वर्ष मंदिर में मनाते हैं।

इस महोत्सव के तहत देवस्थान में प्रभु वेंकटेश की विशेष आरती, गुरु परंपरा आलवंदार स्तोत्र, वेंकटेश स्तोत्र आदि का वाचन किया जाता है। इस पूरे माह भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है।

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