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व्रत की दृष्टि से कार्तिक माह...

कार्तिक मास की महिमा

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- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी
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पुराणादि शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। हर मास का यूं तो अलग-अलग महत्व है मगर व्रत एवं तप की दृष्टि से कार्तिक की बहुत महिमा बताई गई है।

स्कंदपुराण के अनुसार-
' मासानां कार्तिकः श्रेष्ठो देवानां मधुसूदनः।
तीर्थ नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।'
अर्थात्‌ भगवान विष्णु एवं विष्णुतीर्थ के सदृश ही कार्तिक मास को श्रेष्ठ और दुर्लभ कहा गया है। कार्तिक मास कल्याणकारी माना जाता है। कहा गया है कि कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं, सत्युग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।

' न कार्तिसमो मासो न कृतेन समं युगम्‌।
न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थ गंगया समम्‌।'

सामान्य रूप से तुला राशि पर सूर्यनारायण के आते ही कार्तिक मास प्रारंभ हो जाता है। कार्तिक का माहात्म्य पद्मपुराण तथा स्कंदपुराण में बहुत विस्तार से उपलब्ध है। कार्तिक मास में स्त्रियां ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके राधा-दामोदर की पूजा करती हैं। कलियुग में कार्तिक मास व्रत को मोक्ष के साधन के रूप में बताया गया है।

पुराणों के अनुसार इस मास को चारों पुरुषार्थों-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है। स्वयं नारायण ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के माहात्म्य के संदर्भ में बताया है।

इस संसार में प्रत्येक मनुष्य सुख, शांति और परम आनंद चाहता है। कोई भी यह नहीं चाहता कि उसे अथवा उसके परिवारजनों को किसी तरह का कोई कष्ट, दुख एवं अशांति का सामना करना पड़े। परंतु प्रश्न यह है कि दुखों से मुक्ति कैसे मिले?

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हमारे शास्त्रों में दुखों से मुक्ति दिलाने के लिए कई उपाय बताए हैं। उनमें कार्तिक मास के स्नान, व्रत की अत्यंत महिमा बताई गई है। इस मास का स्नान, व्रत लेने वालों को कई संयम, नियमों का पालन करना चाहिए तथा श्रद्धा भक्तिपूर्वक भगवान श्रीहरि की आराधना करनी चाहिए।

कार्तिक में पूरे माह ब्रह्म मुहूर्त में किसी नदी, तालाब, नहर या पोखर में स्नान कर भगवान की पूजा की जाती है।

इस मास में व्रत करने वाली स्त्रियां अक्षय नवमी को आंवला के वृक्ष के नीचे भगवान कार्तिकेय की कथा सुनती हैं। कुंआरों-कुंआरियों एवं ब्राह्मणों को आंवला वृक्ष के नीचे विधिवत्‌ भोजन कराया जाता है। वैसे तो पूरे कार्तिक मास में दान देने का विधान है। बिड़ला मंदिर वाटिका में अक्षयनवमी के दिन मेला भी लगता है। स्कंदपुराण के वैष्णवखंड में कार्तिक व्रत के महत्व के विषय में कहा गया है-

' रोगापहं पातकनाशकृत्परं सद्बुद्धिदं पुत्रधनादिसाधकम्‌।
मुक्तेर्निदानं नहि कार्तिकव्रताद् विष्णुप्रियादन्यदिहास्ति भूतले।'

अर्थात्‌ इस मास को जहां रोगापह अर्थात्‌ रोगविनाशक कहा गया है, वहीं सद्बुद्धि प्रदान करने वाला, लक्ष्मी का साधक तथा मुक्ति प्राप्त कराने में सहायक बताया गया है।

- कार्तिक मास में दीपदान करने की विधि है। आकाश दीप भी जलाया जाता है। यह कार्तिक का प्रधान कर्म है।
- कार्तिक का दूसरा प्रमुख कृत्य तुलसीवन पालन है। वैसे तो कार्तिक में ही नहीं, हर मास में तुलसी का सेवन कल्याणमय कहा गया है किंतु कार्तिक में तुलसी आराधना की विशेष महिमा है।

एक ओर आयुर्वेद शास्त्र में तुलसी को रोगहर कहा गया है वहीं दूसरी ओर यह यमदूतों के भय से मुक्ति प्रदान करती है। तुलसी वन पर्यावरण की शुद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण है। भक्तिपूर्वक तुलसीपत्र अथवा मंजरी से भगवान का पूजन करने से अनंत लाभ मिलता है। कार्तिक व्रत में तुलसी आरोपण का विशेष महत्व है। तुलसी विष्णुप्रिया कहलाती हैं।

- इसी तरह कार्तिक मास व्रत का तीसरा प्रमुख कृत्य है भूमि पर शयन। भूमि शयन करने से सात्विकता में वृद्धि होती है। भूमि अर्थात्‌ प्रभु के चरणों में सोने से जीव भयमुक्त हो जाता है।
- कार्तिक का चौथा मुख्य कार्य ब्रह्मचर्य का पालन बताया गया है।
पांचवां कर्म कार्तिकव्रती को चना, मटर आदि दालों, तिल का तेल, पकवान, भावों तथा शब्द से दूषित पदार्थों का त्याग करना चाहिए।

विष्णु संकीर्तन का कार्तिक मास में विशेष महत्व है। संकीर्तन से वाणी शुद्ध होती है।

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