गीता सार : काम, क्रोध और लोभ- 12

अनिल विद्यालंकार
इच्छा करना मनुष्य के लिए बहुत स्वाभाविक है। वास्तव में बिना इच्छा के जीवन चल ही नहीं सकता। ज्ञानी मनुष्य भी भूख लगने पर भोजन की और प्यास लगने पर पानी की इच्छा करता है। पर संसार के अधिकतर मनुष्यों को इन सीधी-सादी इच्छाओं या आवश्यकताओं की पूर्ति से संतोष नहीं होता।


 

उन्हें जीवन में उत्तेजना की तलाश रहती है। वे हमेशा यही हिसाब लगाते रहते हैं कि उनके पास इस समय कितना है और भविष्य में उन्हें और कितना मिल सकता है। वे संसार में अधिक से अधिक धन कमाना चाहते हैं। इससे समाज के अंदर और साथ ही व्यक्ति के अंदर भी संघर्ष पैदा होता है।

प्राय: मनुष्य एक- दूसरे के शत्रु इस कारण नहीं होते कि उनके पास खाने के लिए काफी नहीं है बल्कि इसलिए कि उनकी असीम तृष्णा को शांत करने के लिए दुनिया में काफी नहीं है। जब किसी तीव्र इच्छा की पूर्ति में बाधा आती है तो क्रोध का जन्म होता है। यदि किसी मनुष्य को किसी से भी कुछ नहीं चाहिए तो उसे कभी क्रोध नहीं आएगा।

पर चूं‍कि मनुष्य का अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं है इसलिए समाज में बहुत अधिक मात्रा में क्रोध विद्यमान रहता है। अनियंत्रित क्रोध से समाज में हिंसा और विनाश आते हैं। क्रोध के कारण विवेक पर पर्दा पड़ जाने से मनुष्य का नाश हो जाता है। 
Show comments

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से शुरू होंगे इन 4 राशियों के शुभ दिन, चमक जाएगा भाग्य

Astrology : एक पर एक पैर चढ़ा कर बैठना चाहिए या नहीं?

Lok Sabha Elections 2024: चुनाव में वोट देकर सुधारें अपने ग्रह नक्षत्रों को, जानें मतदान देने का तरीका

100 साल के बाद शश और गजकेसरी योग, 3 राशियों के लिए राजयोग की शुरुआत

Saat phere: हिंदू धर्म में सात फेरों का क्या है महत्व, 8 या 9 फेरे क्यों नहीं?

Shiv Chaturdashi: शिव चतुर्दशी व्रत आज, जानें महत्व, पूजा विधि और मंत्र

Aaj Ka Rashifal: आज किसे मिलेगा करियर, संपत्ति, व्यापार में लाभ, जानें 06 मई का राशिफल

06 मई 2024 : आपका जन्मदिन

06 मई 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Weekly Forecast May 2024 : नए सप्ताह का राशिफल, जानें किन राशियों की चमकेगी किस्मत (06 से 12 मई तक)

अगला लेख