कूष्माण्ड नवमी की रोचक कथा अवश्य पढ़ें...

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* कूष्माण्ड नवमी क्यों मनाएं, जानिए... 


 
कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से पूर्णिमा तक आंवले में भगवान लक्ष्मीनारायण का वास होता है। इस दिन आंवले और पीपल का विवाह कराने से अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है तथा इसका पुण्य फल करोड़ों जन्मों तक नष्ट नहीं होता। 
 
पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। इसी दिन भगवान विष्णु ने कूष्माण्ड नाम के दैत्य का वध किया था। इसी वजह से इस दिन को कूष्माण्ड नवमी भी कहा जाता है। 
 
कूष्माण्ड दैत्य के शरीर से ही कूष्माण्ड (कद्दू) की बेल उत्पन्न हुई थी इसलिए इस दिन कद्दू दान करने से अनंत कोटि फल की प्राप्ति होती है। कद्दू के अंदर स्वर्ण, चांदी आदि रखकर गुप्त दान करने से मनुष्यों को मन वांछित फल की प्राप्ति होती है। 
 
अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष से अमृत की बूंदें टपकती हैं अत: कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन हर मनुष्य को आंवला वृक्ष का पूजन अवश्य करना चाहिए।
 
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