Mesh Sankranti 2023: 14 अप्रैल को करीब 02 बजकर 42 मिनट सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करेंगे। इस बार की मेष संक्रांति को शुभ फल देने वाली माना जा रहा है क्योंकि इस संक्रांति के चलते करीब एक माह तक वस्तुओं की लागत सामान्य रहने वाली है। धन और समृद्धि में वृद्धि होगी। सेहत में सुधार होगा और दो राष्ट्रों के बीच चल रही कड़वाहट थोड़ी दूर होगी। अनाज के भंडारण में भी वृद्धि होगी। आओ जानते हैं उपाय, दान और पूजा विधि।
शुभ योग : मेष संक्रांति 2023 के दौरान 3 शुभ योग रहेंगे। सबसे पहले सिद्ध योग रहेगा जो सुबह 09 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। इसके बाद, साध्य योग रहेगा। इसी दौरान सबसे शुभ योग सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा जो सुबह 09 बजकर 14 मिनट प्रारंभ होगा।
सूर्य पूजा : इस दिन सूर्य पूजा का खास महत्व रहता है। सूर्य पूजा से मान-सम्मान में वृद्धि होती है। इस दिन विधिवत रूप से सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें।
पूजा के शुभ मुहूर्त :-
क्या है पुण्यकाल : सुबह 11:01 बजे से शाम को 06:55 तक। अवधि- 07 घण्टे 55 मिनट्स।
मेष संक्रांति का महा पुण्यकाल- दोपहर 01:06 बजे से शाम 05:17 बजे तक। अवधि- 04 घण्टे 11 मिनट्स।
मेष संक्रांति का क्षण- दोपहर 03:12 बजे।
ब्रह्म मुहूर्त- प्रात: 04:35 से 05:23 तक।
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12:02 से 12:52 तक।
अमृत काल - रात्रि 09:54 से 11:24 तक।
मेष संक्रांति के शुभ उपाय:-
1. पितृ दोष : पितृ दोष से मुक्ति के लिए आम का टिकोरा, पंखा, बेल का फल, सत्तू, और मिट्टी के घड़े में जल भरकर किसी गरीब को दान दें।
2. गंगा स्नान : यदि संभव तो गंगा स्नान करें या नहाने के पानी में थोड़ा गंगा जल मिलकर स्नान करें। इससे पुण्य फल की प्राप्ति होगी।
3.अर्घ्य: तांबे के लोटे में भरे जल में थोड़ा गुड़, लाल फूल, चावल और रोली मिलाकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें।
मेष संक्रांति के शुभ दान:-
1. लाल फूल, लाल चंदन, लाल वस्त्र का दान करें। इससे सूर्य और मंगल संबंधी दोष दूर होंगे।
2. गुड़, घी, गेहूं, तांबा का दान करने से सूर्य प्रबल होता है और मान सम्मान में बढ़ोतरी होती है साथ ही करियर में फायदा होता है।
मेष संक्रांति 2023 पूजा विधि;-
- पवित्र जल से स्नान करने के बाद पहले सूर्यदेव को अर्घ्य दें और उसके बाद पितरों का तर्पण करें।
- संभव हो तो सूर्य चालीसा या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें फिर सूर्य देव की आरती करें।
- पूजा के बाद अपनी यथाशक्ति किसी गरीब ब्राह्मण को वस्त्र, अन्न, फल आदि का दान करें और दक्षिणा देकर विदा करें।
- सूर्य देव के साथ ही श्री हरि विष्णु और मां लक्ष्मी की पंचोपचार पूजा करें।