श्रावण पूर्णिमा पर क्यों किया जाता है श्रावणी उपाकर्म, जानिए

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* रक्षाबंधन पर श्रावणी उपाकर्म का महत्व
 

 
रक्षाबंधन का पर्व एक ओर जहां भाई-बहन के अटूट रिश्ते को राखी की डोर में बांधता है, वहीं यह
वैदिक ब्राह्मणों को वर्ष भर में आत्मशुद्धि का अवसर भी प्रदान करता है। वैदिक परंपरा अनुसार वेदपाठी ब्राह्मणों के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार है।
 
इस दिन को श्रावणी उपाकर्म के रूप में मनाते हैं और यजमानों के लिए कर्मकांड यज्ञ, हवन आदि करने की जगह खुद अपनी आत्मशुद्धि के लिए अभिषेक और हवन करते हैं। ओझल होते संस्कारों के इस कठिन समय में जानिए श्रावणी उपाकर्म पर्व का महत्व : -
 
- पं. गिरधर बासोतिया के मतानुसार यह उपाकर्म द्विज के शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि करता है।
 
- पं. दीपककृष्ण तिवारी के अनुसार वैदिक काल से द्विज जाति पवित्र नदियों व तीर्थ के तट पर आत्मशुद्धि का यह उत्सव मनाती आ रही है, पर वर्तमान समय में ब्राह्मण व वैदिक श्रावणी की परंपरा को भूलते जा रहे हैं। इस कर्म में आंतरिक व बाह्य शुद्धि गोबर, मिट्टी, भस्म, अपामार्ग, दूर्वा, कुशा एवं मंत्रों द्वारा की जाती है। 
 
- पं. किशनलाल शास्त्री के अनुसार पंचगव्य महाऔषधि है। श्रावणी में दूध, दही, घृत, गोबर, गोमूत्र प्राशन कर शरीर के अंतःकरण को शुद्ध किया जाता है। 
 
- पं. बालकृष्ण त्रिवेदी वेदाचार्य के अनुसार सनातन धर्म में दशहरा क्षत्रियों का प्रमुख पर्व है। दीपावली वेश्यों व होली अन्य जनों के लिए विशिष्ठ महत्व का पर्व है। रक्षाबंधन अर्थात् श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाने वाला श्रावणी उपाकर्म ब्राह्मणों व द्विजों का सबसे बड़ा पर्व है।  
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